पृष्ठ:हिंदी साहित्य का प्रथम इतिहास.pdf/९५

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

निकल जाने का प्रबन्ध करके, जिससे वंश परम्परा जीती जागती रहे, राना, ने अपने वंश के भक्तों को बुलाया। उनके लिए जीवन में अब कोई आकर्षण नहीं रह गया था। उन्होंने स्वयं गढ़ी का फाटक खोल दिया और अलाउद्दीन । के दल में मृत्यु को हाहाकार मचा दिया एवं स्वयं भी मृत्यु का आलिंगन किया । *किंतु आत्म प्रियता के इस कार्य के पहले एक और भयानक नरमेध, जौहर के रूप में हुआ, जहाँ अपवित्र होने से अथवा बंदी बनाए जाने से बचने के लिए नारियाँ बलिदान हो जाती हैं। उन भीतरी तहखानों में चिता जला दी गई, जहाँ दिन का प्रकाश भी नहीं पहुँचता था । चित्तौर के रक्षकों ने अपनी रानियों, पत्नियों, बेटियों को कई सहस्र की संख्या में जलूस के रूप में देखा । सुन्दरी पद्मिनी ने इस भीड़ को बन्द कर दिया, जिसमें वह सब नारी सौंदर्य अथवा तारुण्य प्रवृद्ध थी, जो तातारों की वासना द्वारा कलुषित हो सकता था । वे उस गर्भ-गृह में ले जाई गई, जहाँ निगलने वाली आग की . लपटों में वे कलंकित होने से अपने को बचा सकती थीं, और द्वार बंद हो गया ।” तातार विजेता ने जन रहित राजधानी पर अधिकार पाया, जो उसके बीर रक्षकों के शवों से ढकी हुई थी और अब भी भीतर से धुआँ उठ रहा था, जहाँ उसकी इष्ट सुन्दरी राख का ढेर बनी हुई पड़ी थी । | मलिक मुहम्मद ने नायक का नाम भीमसी से रतन में बदल दिया है, जो उसे समय मेवाड़ का राजा था, जब यह ग्रंथ लिखा गया । ( टाड, भाग १, पृष्ठ ३०९, कलकत्ता संस्करण भाग १, पृष्ठ ३२८ ) ।। उन्होंने अपनी कहानी को कुछ अंश एक अन्य पद्मावत, उदयन की पद्मावती और रत्नावली से भी उधार लिया है। वह अपने मायक को प्रिया- प्राप्ति के लिए योगी बना देता है और दोनों रानियों के चलने का दृश्य यद्यपि वास्तविक करुण दुर्घटना से ही प्रेरित है, फिर भी यह रत्नावली में आई हुई ऐसी परिस्थिति के पूर्ण मेल में है। • पद्मावत के रचनाकाल से हिन्दुस्तान का साहित्य दो धाराओं में जमकर स्थिर सा हो गया । यह रामानंद और वल्लभाचार्य के सुधारों के कारण हुआ । इनमें से पहले ने, जिसका विवरण पहलै दिया जा चुका है, विष्णु के अवतार राम को उपासना की आधुनिक पद्धति चलाई; और दूसरे ने विष्णु के अवतार कृष्ण की उपासना की । इस तिथि के अनंतर सभी बड़े काव्य-ग्रंथ या तो राम की उपसना को लेकर लिखे गए, अथवा कृष्ण की । मलिक मुहम्मद की कृति १. यह ध्यान देने योग्य है कि गुजरात के बहादुरशाह द्वारा डाला गया चित्तौर का दूसरा घेरा १५३३ ई० में पड़ा । ( टाढ भाग १ पृष्ठ ३११; कलकत्ता संस्करण, भाग १ पृष्ठ ३३१)