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विट्ठलनाथ गोसाँई-व्रजवासी । १५५० ई० में उपस्थित।

रागकल्पद्रुम । राधावल्लभी संप्रदाय के गुरु रूप में विट्ठलनाथ व्रजवासी ( उपस्थिति काल १५५० ई० } वल्लभाचार्य के उत्तराधिकारी हुए । विठ्ठलनाथ . के सात पुत्र हुए, जिनमें से प्रत्येक गोसाई अर्थात् राधावल्लभ संप्रदाय का गुरु हुआ। इनमें से दो, (गिरधर और जदुनाथ' ) के वंशघर हैभी गोकुल २ में हैं। इनके अनेक छन्द रागसागरोद्भव में संकलित हैं और यह सम्भवतः वही हैं जिनका उल्लेख शिव सिंह सराज में विट्ठल कविः नाम से 'शृङ्गारी कवि' के रूप में हुआ है।

वल्लभाचार्य के चार प्रसिद्ध शिष्य कृष्णदास पय-अहारी (संख्या ३६), सूरदास ( सख्या ३७), परमानन्ददास ( संख्या ३८ ) और कुम्भनदास (संख्या छा गई है ३९) थे । विठ्ठल नाथ के भी चतुर्भुजदास (संख्या ४०), छीत स्वामी (संख्या ४१), नन्ददास (संख्या ४२ ) और गोविन्ददास ( संख्या ४३) नामक चार प्रसिद्ध शिष्य थे। प्रथम चार को १५५० ई० में उपस्थित समझा जा सकता है और अंतिम चार को १५६७ ई० के आसपास । ये आठो ब्रज में रहते थे, ब्रजभाषा में लिखते थे, अष्टछाप अर्थात् ब्रजभाषा साहित्य के सर्वमान्य आठ श्रेष्ठ कवि नाम से अभिहित थे । विलसन तथा अन्य लोगों ने अष्टछाप नामक एक ग्रन्थ की भी चर्चा की है, जिसमें इन आठों कवियों का जीवन चरित है; और एक समय में स्वयं ऐसे किसी ग्रन्थ में विश्वास करता था; लेकिन अब मैं समझ गया हूँ कि अष्टछाप का अभिप्राय इसी कवि सूची से है, जो जहाँ तक मैं समझ सका हूँ, पहली बार सूरदास के कुछ . पदों में ( संख्या ३७ में अनूदित ) व्यवहृत और अभिहित हुआ और, दूसरीबार, जैसा कि मैंने देखा है, ब्रजवासी गोपालसिंह कृत तुलसी शब्दार्थ प्रकाश में, जिसका समय मैं निश्चित नहीं कर सका हूँ।

दि०---यहाँ भी ‘वल्लभ' संप्रदाय के लिए अज्ञानवश 'राधा वल्लभी'

शब्द का प्रयोग हो गया है। भारतेंदु ने लिखा है, "बड़े गिरधर जी और छोटे यदुनाथ जी का वंश अब तक वर्तमान है।” ( भारतेंदु ग्रंथावलो, तृतीय भाग, पृष्ठ ७० )। उन्होंने यह नहीं लिखा है कि कहाँ वर्तमान है।

ग्रियर्सन ने गोकुल में वर्तमान मान लिया है। यह ठीक नहीं । गिरधर जी के,


१. हरिश्चंद्र भाग २, पृष्ठ ३६ . २. और अधिक सूचना के लिए विलसन कृत रेलिजस सेक्टसौं आफ़ द हिदूजा', भाग १, पृष्ठ १२५ देखिए, जहां वह भ्रम से 'बितलनाथ' कहे गए हैं। .