पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०

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भारतीय विवाह-प्रथा, जाति-प्रथा, तथा अन्य रीति-रस्मों आदि का परिचय देने की दृष्टि से कुछ अंशों का शब्दशः फ़्रेंच में अनुवाद और कुछ का अपनी भाषा में सार प्रस्तुत किया है। उदाहरण स्वरूप, कंस-वध, शंख-जन्म, द्वारिका-स्थापना, राजसूय-यज्ञ, नरकासुर, ऋतु-वर्णन, मथुरा-वर्णन आदि ऐसे ही प्रसंग हैं। अनुवाद या सार प्रस्तुत करते समय उन्होंने मूल 'प्रेमसागर' के अध्यायों के क्रम का अनुसरण नहीं किया। 'प्रेमसागर' को तासी काफ़ी महत्त्व देते थे और उसका उन्होंने जिस प्रकार विश्लेषण किया है उससे उनके कट्टर ईसाई होने का प्रमाण मिलता है। 'प्रेमसागर' के बाद तुलसी कृत 'सुंदर-काण्ड' का और फिर 'सिंहासन बत्तीसी' के प्रारम्भिक अंश का अनुवाद है। इस दूसरी जिल्द के शेषांश का संबंध उर्दू से है जिसमें 'आराइश-इ-महफ़िल', सौदा कृत लाहौर के कवि फ़िदवी पर तथा अन्य व्यंग्य, ग़ज़ल, क़सीदा, मसनवी आदि फ़्रेंच में अनूदित हैं। अन्त में विषय-सूची है। कुल मिला कर उसमें XXXII और ६०८ पृष्ठ हैं‌‌।

प्रथम संस्करण की दूसरी जिल्द में दिए गए उद्धरण और विश्लेषण द्वितीय संस्करण में मुख्यांश में जीवनी और ग्रन्थों के विवरणों के साथ ही दे दिए गए हैं। जैसे, जहाँ 'कबीर' का उल्लेख हुआ है वहीं उनसे सम्बन्धित 'भक्तमाल' वाला अंश भी है, अलग नहीं है। अपवाद-स्वरूप केवल 'मधुकर साह' और 'राँका और बाँका' हैं। इन दोनों का उल्लेख न तो प्रथम संस्करण की पहली जिल्द में और न द्वितीय संस्करण की किसी जिल्द में है। अतः वे प्रस्तुत अनुवाद के परिशिष्ट ४ और ५ के अन्तर्गत रख दिए गए हैं।

द्वितीय परिवर्द्धित और संशोधित संस्करण तीन जिल्दों में हैं। पहली और दूसरी जिल्दें १८७० में और तीसरी जिल्द १८७१ में