पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१००

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भूमिका [ ७३ का संस प्रह तैयार करने को भाँति, पाँच और साथ ही सात विभिन्न किस्सों को विकसित करने की चेष्टा को है जिनके संग्रह को उन्होंने ‘ख़त’, ‘पाँच' या हफ़्त', सात, शोक दिए हैं । उदाहरण के लिए निज़ामो," .खुसरो, और हातिफ़ी ( HOtifi ) के ‘ लम्स', जामो का ‘हफ़्त', आदि। पूर्व में बोरतापूर्ण कथाएँ भी मिलती हैं, जैसे अरबों में इस प्रकार का अन्तर ( Antar ) का प्रसिद्ध इतिहास है, जिस में हमारी प्राचीन बीरकथानों की भॉति, मरे हुए व्यक्ति, उड़े हुए वृक्ष, केवल एक व्यक्ति द्वारा नष्ट की गई सेनाएँ मिलती हैं। हिन्दुस्तानी में किस्सा-ई अमीर हम्ज़ा , ‘ख़ाविराम' आदि की गणना वीरकथाओं में की जा सकती है । इससे पहले भाग में ही अनेकानेक पूर्ण कहानियों का उल्लेख किया जाना चाहिए : ‘एक हज़ारएक रातें, जिसके हिन्दुस्तानी में अनुवाद हैं; ह्रिद अफ़रोज, ‘मुफ़र उल्कुलू’ (Mufarrah uiculi) नादि । दूसरे भाग में भारतीय मुसलमानों में अत्यन्त प्रचलित काव्य, ‘मयेि’ या हसन, हुसेन और उनके साथियों की याद में विलाप, रखे जाने वा५ि। तीसरे में पदनामें , या शिक्षा की पुस्तकेंरखी जाती हैं, जो सारा ( Sirach ) के पुत्रईसा की धर्मसंबंधी पुस्तक को भाँति शिक्षाप्रद कविताए हैं, ‘अख़लाक', या श्रचार, पद्यात्मक उद्धरणों से मिश्रितगद्य में नैतिकता संबंधी ग्रन्थ हैं, जैसे गुलिस्ताँ’ और उसके अनुकरण पर बनाए गए ग्रन्थ : उदारहण के लिए ‘सैर-इ इशरत, जिसका उल्लेख मैंने सालिह पर लेख में किया है । चौधे में केवल वास्तव में श्रृंगारिक कही जाने वाली कविताएँ ही नहों, किन्तु समस्त रहस्यवादी ग़ज़लों को रखना चाहिए जिनमें दिव्य प्रेम १ निज़ामो के ‘खम्स' में हैं-—‘मलजन उल्असर, ‘खुसरो ओो शीरो, ‘४अत पैकर, 'लैलामजनू, और सिकन्दर नामा' ।