पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७४ ? हिंदुई साहित्य का इतिहास प्राय: अत्यन्त लौकिक रूप में प्रकट किया जाता है, जिनमें आध्यात्मि? और प्रायः भद्दे तरीके से प्रकट की गई औौर कभीकभी अश्लील रूप में इन्द्रिय-संबंधी बातों का ठ कथनीय मिश्रण २ता है। ।" इन कवियों का संबंध सामान्यत: सूफ़ियों के, जिनके सिद्धान्त वास्तव में बही हैं जो जोगियों द्वारा माने जाने वाले भारतीय सर्वदेववाद के हैं, मुसलमानी दार्शनिक संप्रदाय से रहता है । इन पुस्तकों में ईश्वर और मनुष्य, भौतिक वस्तुओं की निस्सारता, और आध्यात्मिक वस्तुओं की वास्तविकता पर जो कुछ प्रशंसनीय है उसे समझने के लिए एक क्षण उनकी घातक प्रवृतियों को भूल जाना आवश्यक है। । पाँचवें में वे रखी जानी चाहिए जिनमें ईश्वरप्रार्थना जो दीवानों और बहुत-सी मुसलमानी रचनाओं के प्रारम्भ में रहती है, मुहम्मद और प्रायः उनके बाद के इमामों की प्रशंसा करने वाली कविताएँ , और अंत में बे कविताएँ निमें कवि द्वारा शासन करने वाले सम्राट या अपने आश्रयदाता का यशगान रहता है । पिछली रचनाओं में प्राय: अतिशयोक्ति से काम लिया गया है 1 अन्य अनेक बातों को तरह हिन्दुस्तानी कवियों ने इस बात में भी फ़ारसी वालों का पूर्ण अनुकरण किया है । सेल्यूकिंड (Seljouki des) और अताबेक (Atabeksवंश के दपूर्ण शांइशाई थे जिनके अंत र्गत कृपा ही के भूखे कवियों ने इन शहंशाहों की तारीफों के पुल बाँध दिए, अपनी रची कविताओं में श्रावश्यकता से अधिक अतिशयोक्तियों का प्रयोग मैं एक बात ध्यान देने योग्य है, कि फ़ारस और भारत के अत्यन्त प्रसिद्ध मुसलमान रचयिताओंजिन्हें संत व्यक्ति समझा जाता है, जैसेहाफिज, सादी, जुरत, कमाल, आदि लगभग सभी ने अश्लील कविताएँ लिखी है । मुसलमानों के बारे में वहीं कहा जा सकता है जो संत पॉल ने मूर्तिपूजकों के बारे में कहा है : 'Professing themselves to be wise, they become fools... wherefore God gave...upto uncleanness through the lusts... to dishonour their own bodied between them selves' (EDistle to the Romans...पॉल की पत्री रोगों के नाम 1, 2224)