पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०२

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[ ७। करने लगे जिनसे विषय संजीर्ण और जो उब देने वाले हो गए ।कुछ तो ऐसी प्रशंसा करने में कोई संकोच नहीं करते जो न केवल चापलूसी को, वरन् कुत्सित रुचि और उसी प्रकार बुद्धि की सीमा का उलौंघन कर जाती है । अपनेअपने चरित-नायकों का चित्र प्रस्तुत करने के लिए दृश्यमान्. जगत से ही इन कवियों की कल्पना को यथेष्ट बल नहीं मिलता, वे आध्या मिक जगत् में भी विचरण करने लगते हैं। इस प्रकार, उदाहरण के लिए, उनके शाशाह की इच्छा पर प्रकृति की सब शक्तियाँ निर्भर रहती हैं । वहीं सूर्य और चन्द्र का माएं निर्धारित करती है । सब कुछ उनकी आशा के वशीभूत है । स्वयं भाग्य उनकी इच्छा का दास है ।' मुसलमानी रचनाओं के छठे भाग में व्यंग्य आते हैं । दुनिया के सब देशों में श्रालोचक, व्यंग्य ने सब बाधाओं को पार कर प्रकाश पाया है । परीक्षा करमा, तुलना करना, वाश्तव में यह मानवी प्रकृति का अत्यन्त सुन्दर विशेषाधिकार है । अथा क्योंकि मनुष्य के सत्र कार्य अपूर्णता पर ५ गेटे (Goethel Ost West, Divan (वीं पश्चिमो दीवान) २ वैसे भी पुल सोकल लेखकों में ऐसी अतिश्योक्तियाँ पाई जाती हैं । क्या बर्चिल ने अपने 56oriques' के प्रारंभ में सीजर को देवताओं का स्वामी नहीं बताया ? क्या उसने टेथिस (Tfthys) की पुत्री को स्त्री रूप में नहीं दिया १ क्या। इस बात की इच्छा प्रकट नहीं की कि उसके सिंहासन को स्थान प्रदान करने के लिए स्कोरपियन (राशि चक्र का प्रतीकअनु०) का नाराडंल आदरपूर्वक मारी से हट जाय । मध्ययुगीन गारी कवि ( troubadours ) इसी अतिशयोक्ति में डूबे हुए . हैं, वे समस्त प्रकृति को अपनी नायिका की अनुच्चरी बना देते हैं और न फ़ौतेन ( ia Rontaine) ने अपनी सरलता के साथ कभीकभी चतुराई की बात कह दी है:- तोन प्रकार के व्यक्तियों की जितनी अधिक प्रशंसा की जाय थोड़ी है—अपना ईश्वर, अपना प्रेयसी और अपना राजा।