पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०४

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यदि हमें कुछ लोगों के दोषों पर आश्चर्य होता है, तो दूसरों के अच्छे. गुणों से उसाह होता है । फ़ारसी के अत्यन्त प्रसिद्ध व्यंग्यकार, न वरी ( Anari ), को इस प्रकार दूसरे क्षणों में यशगान करते हुए भी देखते हैं । भारतवर्ष में भी यही बात है ः अत्यन्त सिद्ध व्यंग्यकार कवियों ने, जिनके व्यंग्यों में अतिशयोक्तियां मिलती हैं, यशगान भी किया है ; किन्तु व्यंग्यों में यशगान की अपेक्षा उनका अच्छा रूप मिलता है । उनके व्यंग्यों में अधिक मौलिकता पाई जाती है, और स्वयं उनके देश बासी उन्हें उनके यशगान से अच्छा समझते हैं । यह सच है कि हिन्दुस्तानी कवियों ने व्यंग्य सफलतापूर्वक लिखे हैं । उनमें व्यंग्य की परिधि उत्तरोतर विस्तृत होती जाती है । उन्होंने पहले व्यकियों को, फिर संस्थाों क, फिर अन्त में उन चीजों को जो मनुष्यइच्छा पर निर्भर नहीं रहतीं अपना निशाना बनाया है । यहाँ तक कि उन्होंने स्वयं प्रकृति की” उसके भयंकर और डरावने रूप में आालोचना की है । इसी प्रकार उन्होंने गर्मी के विरुद्ध, जाड़े के विरुद्ध, बाढ़ों के विरुद्ध, और साथ ही अत्यन्त भयंकर और आत्पन्त वृणित बीमारियों पर ब्यूग्य लिखे हैं । हम कर सकते हैं कि आधुनिक भारत के व्ययों के अधिकांश भाग का विषय यही बातें हैं । तो भी पूर्व में सर्वप्रथमघरेलू जीवन के रीति-रस्मों पर व्यंग्य प्रारंभ करने. में हिंदुस्तानी कवियों की विशेषता हैमैं किन्तु इन व्यंग्यों में अधिकतर १ इसी तरह कभीकभी परमात्मा की भी। रोमनों में भी जुवेनल (Jujhai ) ने, बड़े आदमियों द्वारा अपनों शकूि के दुरुपयोग का बुद्धिमानी के साथ विरोध करते हुएभाग्य की गलतियों के विरुद्ध, अर्थात ईश्वर, जो बुराई से अच्छाई पैदा करता है, के रहस्यों के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए समाप्त किया । २ काइम ( किंयामउद्दीन) पर लेख देखिए। 3 अरब, तुर्की और फ़ारसी, जो हिन्दुस्तानी सहित पूर्वी मुसलमानों की चार प्रधान भाषाएं हैं, के साहित्यों में मां व्यंग्य मिलते हैं; किन्तु उनमें हिन्दुस्तानी व्यं थीं। की खास विशेषता नहीं है। हमसा(Hamica) में व्यंग्य, अहिजा’,संबं तीन पुस्तकें है; अन्य के अतिरिक्त एक काहिली पर है; एक दूसरी त्रिों के