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हिंदुई साहित्य का इतिहास

एक कठिनाई है, वह यह कि उनका ऐसे विषयों से संबंध है जिसका केवल स्थानीय या परिस्थितिजन्य महत्व है, और जो अश्लीलता द्वारा दूषित और छोटी-छोटी बातों द्वारा विकृत हैं, जो, सौदा और जुरत जैसे अत्यन्त प्रसिद्ध कवियों में भी, अत्यन्त साधारण हैं; मैं भी अपने अवतरणों में उन्हें थोड़ी संख्या में, और वह भी काट-छाँट कर, दे सका हूँ। मुझे स्पष्टतः अत्यन्त प्रसिद्ध व्यंग्य छोड़ देने पड़े हैं, ऐसे जिन्होंने अपने रचयिताओं को अत्यधिक खपाति प्रदान की,[१] और जिनका भारत की प्रधान रचनाओं के रूप में। उल्लेख होता है, जिनमें सदाचारों से संबंधित जो कुछ है उसके बारे में शिथिलता पाई जाती है।

किसी ने ठीक कहा है कि प्रहसन (Comédie) केवल कम व्यक्तिगत और अधिक अस्पष्ट व्यंग्य है। आधुनिक भारतवासी निंदा के इस साधन से हैं विहीन नहीं। यदि वे वास्तविक नाटकों, जिनके संस्कृत में सुन्दर उदाहरण हैं, से परिचित नहीं हैं, तो उनके पास एक प्रकार के प्रहसन हैं जिन्हें बड़े मेलों में बाज़ीगार [२] खेलते हैं। और जिनमें कभी कभी राजनीतिक संकेत रहते हैं। उत्तर भारत के बड़े नगरों में इस प्रकार के अभिनेता पाए जाते हैं जो काफ़ी चतुर होते हैं। कभी कभी इन कलाकारों का एक समुदाय विरुद्ध तीसरा पुरुषों क विरूद्ध है; किन्तु वे एक प्रकार से छोटी हास्योपादक कविताएँ हैं। फ़ारसी में व्यंग्य कम संख्या में हैं किन्तु वे एक प्रकार से व्यक्तियों के प्रति अपशब्द है। महमूद के विरुद्ध किरदौसी का प्रसिद्ध व्यंग्य ऐसा ही है।


  1. उदाहरण के लिए मैंने घोड़े पर, उसकी चमकने की आदत के विरुद्ध लिखे गए, सौदा कृत व्यंग्य का अनुवाद नहीं दिया, यद्यपि वही बात भारतवर्ष में बहुत अच्छी समझी जाती है, और ख़ास तौर से मर द्वारा जो स्वयं एक अच्छे लेखक होने के साथसाथ अच्छी पहिचान भी रखते थे।
  2. या अभिनेता से बाजीगार नटों की क़ौम के होते हैं, और सामान्यतः मुसलमान है। कभीकभी ये आवारा लोग होते है जिनका किसी धर्म से संबंध नहीं होता, और इसीलिए हिन्दुओं के साथ प्रभु की पूजा, और मुसलमानों के साथ मुहम्मद का आदर करते हुए बताए जाते हैं।