पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०७

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८० हिंदुई साहित्य का इतिहास है कि चित्रण बहुत बोझिल रहता है और तिरस्म बहुत बढ़ा कर दिखाए । जाते हैं, जब कि वे अधिकतर ट्राली यूरोपियन दृश्य तक रहते हैं किन्तु अंत में वे विविधता से संपन्न रहते हैं और पत्रों के चरित्र में कौशल रहता है । इस प्रकार के अभिनयों से पहले सामान्यतः नाच और इस संबंध में उत्तर में कलावन्त’ और मध्य भारत में ‘भाटर, ‘चारण' और 'बरदाई’ कहे जाने वाले गायकों द्वारा गाए जाने वाले हिन्दुस्तानी गाने रहते हैं।’ का क्या होगा । नवयुवक सिविलियन, कमरे से बाहर जाते समयएड़ी के बल घूमते हुए चिल्लाकर कहता है, गौडैम ( Goddam , फाँसी। ऊपर जो कुछ कहा गया है वह ‘एशियाटिक जर्नल( नई सीरीजजि० २३, ३० ३७ ) में पढ़ने को मिलता है । बेवन ( Bevan ) ने भी एक हास्य रूपक या प्रहसन का उल्लेख किया है (Thirty years in India', भारत मैं तोस वर्षजि० १ ४० ४७ ) जो उन्होंने मद्रास में देखा था, और जिसका विषय एक यूरोपियन का भारत में आना, और अपने दुभाषिए की चालाकियों का अनुभव करना है । अपनी यात्रा करते समय हेबर ( Hiber ) एक उत्सव का उल्लेख करते है जिसमें उनकी जो भी थी, और जहाँ तीन प्रकार के मनोरंजन ये संगीत, नृत्य और नाटक । वीकी (Viiki ) नामक एक प्रसिद्ध भारतीय गायिका ने उस समयअन्य के अतिरिक्त, अनेक हिन्दुस्तानी गाने गाए थे । मेरे माननीय मित्र स्वर्गीय जनरल सर विलियम ब्लैकबर्न (William Black bume ) ने भी दक्खिन में हिन्दुस्तानी रचनाओं का अभिनय देखने की निश्चित बात कही है । १ कुछ वर्ष पूर्वकलकत्ते में एक रईस बाबू का निजी थिएटर था, जो 'शामबाज़ार' नाम हिस्से में स्थित उसके घर में था । भद्दी भाषा में लिखी गई रचनाएँ हिन्दू की या पुरुष अभिनेताओं द्वारा खेली जाती थीं। देशी गवैएजो लगभग सभी ब्राह्मण होते थे, वाद्यसंगीत (ऑरकेस्ट्रा) प्रस्तुत करते थे, और अपने राष्ट्रीय गाने ‘सितार’, ‘सारंगी’, पखवाड’ आदि नामक बाजों पर बजाते थे। अभिनय ईश्वर की प्रार्थना से आरंभ होता था, तब एक प्रस्तावना के गान द्वारा रचना का विषय बताया जाता था । अंत में नाटक का अभिनय होता था। ये अभिनय