पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१०८

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f पटे अंत में वर्णनात्मक कविताओं के सातवें भाव में ऋतुओंमहीनों, फूलों, मृगया श्रादि से संबंधिद अनेक कविताएँ रखी जाती हैं जिनमें से कुछेक इस जिल्द में दिए गए अवतरणों में मिलेंगी। मैं यहाँ बता चाहता कि हिन्दुस्तानी -शास्त्र (उरूज़) देना हूं के नियमकुछ थोड़े से अंतर के साथ, वही हैं जो अस्त्रीफारसी के हैं, जिनको व्याख्या मैंने एक विशेष विवरण ( Mठंmoire ) में की है ।' उर्दू और दक्खिनी की सब कविताएँ तुकपूर्ण होती हैंमैं किन्तु जब पंक्ति के अंत में एक या अनेक शब्दों की पुनरावृत्ति होती है तो तु पूर्ववतों शब्द में हत है । तुक को 'काफ़िया, और दुहराए गए शब्दों को दिी' कहते हैं । आपने तस्कर के अंत में मीर तकी ने रेढ़ता या विशे पत: हिन्दु- स्तानी कविता के विषय पर जो कहा है वह इस प्रकार है : ‘रलता (मिश्रित) प लिखने की कई विधियाँ हैं : १. एक मिसराफ़ारसी और एक हिन्दी 3 में लिखा जा सकता है, जैसा ख़्स ने आपने एक परि चित किता (quita ) में किया हैं । मैं इसका उल्टा, पहला मिसरा हिन्दी मेंऔर दूसरा फ़ारस में, भी लिखा जा सकता है, जैसा मीर मुईजुद्दीन बैंगला में, जो बंगाल के हिन्दुओं द्वारा प्रयुक्त विशेष भाषा है, होते थे। ( एशियाईटेक जर्नल, जि० १३, नई सीर, ० ४५२, as int. ) १ ‘जन पसियातक' (Journal Asiatique ), १८६२ २ Rhetorique dcs peuples musulmans ( मुसलमान जातियों का काव्यशान ) पर मेरा चौथा लेख देखिएभाग २३ । 3 यह अनिश्चित शब्द, जिसका ठक-ठोंक अंर्थ ‘भारतीय’ है, हिन्दुस्तान के लिए प्रयुक्त होता है, तथा विशेषतःजैसा कि मैंने अपनी ‘Rudiments de la langue hindoai' (हिन्दुई भाषा के प्राथमिक सिद्धान्त ) की भूमिका में बताया ,को देवनागरा अक्षरों में लिखित आधुनिक बोला (dialecte) के लिएं।