पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१११

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४ ॥ हिंदुई साहित्य का इतिहास लेखकों ने इस प्रकार की रचना का अभ्यास किया है, और गद्य और पठ दोनों में ही रूपकालंकार के लिए अपनी ननिथत्रित रुचि प्रकट की है । मुझे यह कहने की आवश्यकता नहीं कि उसमें मौलिक, और विशेषतः उद्धत पद्यों का बाहुल्य रहता है । कसीदा’। इस कविता में, जिसमें प्रशंसा ( सुदा ), या व्यंग्य ( हो ) रहता है, एक ही तृक में बारह से अधिक (सामान्यतः स) पंकियां रहती हैं, आप ाद स्वरूप पहली है, जिसके दो मिसरोंका तुक आपस में अवश्य मिलना चाहिए, औौर जिसे मुस' अर्थात् , तुक मिलने वाले दो मिसरे, और ‘मतला’ कहते हैं । अंत, जिसे मताकहते हैं, में लेखक का उपनाम अवश्य आना चाहिए । ‘क्तिा’, ‘दुकड़ा, अर्थात् चार मिसरोंया दो पंक्तियों में रचित छन्द जिसके केवल अंतिम दो मिसरों की तुक मिलती है । पद्य मिश्रित गद्य-च नाधों में प्रायः उनका प्रयोग होता है : ति’ के एक छन्द को किता बन्द’ कहते हैं। कौल एक प्रकार का गीत,‘चाइने अकरीके अनुसार, जिसका व्यवहार विशेषत: दिल्ली में होता है । ग्नयाल, विकृत रूप में लियाल, और हिन्ई में ‘ख्याल’ । हिन्दू औौर मुसलमान टेक वाली कुछ छोटी शक्तियों को यह नाम देते हैं, जिनमें से अनेक लोकप्रिय गाने न गई हैं, जिन्हें गिलक्राइस्ट ने गरेज़ी नाम -Catch२ दिया है । इन कत्रिता का विषय प्रायः शृंगारात्मक, या कम सेकम में कुर्कतापूर्ण रहता है । वे किसी स्क्री के मुंह से कहलाई जाती १ जि० २, ७० ४५है २ सोचने की बात हैं, कि यद्यपि आधुनिक भारतीयों में यह शब्द चिरपरिचित अरबी शब्द का एक रूप माना जाता है, और जिसका अर्थ है विचार, वह संस्कृत ‘खेल-—भजन, गोत—का रूपान्तर है. ।