पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/११४

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भमिका भारतीय मुसलमानों के साहित्य में गजलों के संग्रह सबसे अधिक प्रचलित हैं । लोग एक या टो गजल लिखते हैं, तत्पश्चात् कुछ और ; अंत में जब उनकी संख्या काफ़ी हो जाती है, तो दीवान के रूप में संकलित कर दी जाती हैं, उसकी प्रतियाँ उतारी जाती हैं, और अपने मित्रों में बाँट दी जात हैं : कुछ कवियों ने तो कई दीवान तैयार किए हैं : उदाहरणार्थ मीर तक्रो ने छः लिखे हैं । दुर्भाग्यवश उनमें लगभग हमेशा एक से विचार रहते हैं, और कभीकभी माषा भी एक सो रहती है ; सथ ही, कई स कविताओों के दीवान में नए विचार प्रस्तुत करने वाली या मौलिक रूप में लिखी गई कविताएँ ना कठिन हो जाता है। ‘ना’ स' -प्रशंस-—कविताओं में विनय को दिया जाने वाला नाम, अर्थात् ईश्वर, मुहम्मद, और कभीकभी ख़लीफ़ाओं औौर इमामों की स्तुतियाँ जिनसे मुसलमाभ अपने ग्रन्थ प्रारंभ करते हैं । निस्’-संबंध । इस प्रकार का नाम एक विशेष प्रकार की रचना को दिया जाता है जिसमें कुछ ऐसे वाक्यांश होते हैं जिनका आपस में कोई सम्बन्ध प्रतीत नहीं होता, नौर जिनकी व्याख्या के लिए बातचीत करने वाले को संबोधित करना पड़ता है जिसका उत्तर एक साथ विभिन्न प्रश्नों के सम्पन्ध में लागू होता है । नुक्ता’ ‘विन्द’, ‘सुन्दर शद्र , एक प्रकार का इरम का गाना है। ‘ई-एक जैसा कि इसके नाम से प्रकट होता है, एक स्फुट छन्द है, अर्थात् दो दरणों द्वारा निर्मित ‘वैत’ । ‘दीवाना ' के अन्त में प्रायः कुछ 'फ़’ रखे जाते हैं, औौर उस समय उन्हें सामान्य शीर्षक फरीदियात दिया जाता है । ‘न्द' का ठीक-ठीक अर्थ है ‘छ; : जैसे ‘ पुत्र बन्द’ में सात छन्द होते हैं । ‘तर्ज चन्द' अथवा 'टेक्रयुक छन्द, उस कविता को कहते हैं । १ विलार्ड (Willard , म्यूजिक व हिन्दुस्तान, पु8 ६३