पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/११५

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स्म हिंदुई साहित्य का इतिहास जिसमें विभिन्न लुक वाले, पाँच से ग्यारह पंक्तियों तक के, छः न्द होते हैं, जिनमें से हर एक के अंत में कविता से बाहर की एक ख़ास पंक्ति ' दुराई जाती है, किंतु जिसके अर्थ का छन्द के साथ साम्य होता , चाहे वह बिना पंक्तियों के अपने में पूर्ण हो हो । उसमें पाँच से कम नौर बारह से अधिक छन्द तो होने ही नहीं चाहिए ।’ ‘तरकीय बन्दमयुत छन्द, उस रचन को कहते हैं जिसके छन्दों की अंतिम पंक्तियाँ बदल जाती हैं । यद सामा न्यतः प्रशdमक कविता होती है, कभीकभी प्रत्येक छन्द के अंत में आने वाली स्कुट फैक्तयों के जोड़ देने से एक गज़ल बन सकती है। इस कविता के अंतिम छद में, साथ ही पिछली के में, कवि अपना तखल्लुस अवश्य देता है। इस संबंध में सौ ने, फिदवी पर अपने व्यंग्य में, कहा है कि कवियों को पंक्तियों में अण्ना तखल्लुस तो अवश्य रखना चाहिए, किंतु असली नाम कभी नीं। भ्रया’, या संग्रह-पुस्तक ( alburn )। यह विभिन्म रचनात्रों के पच्चों का संग्रह होता है । आयताकार संग्रहपुस्तक ( album ) को जिसमें दूसरों तथा खास मित्रबांधवों के प रहते हैं विशेष रूप से ‘सफ़ीना’ कहा जाता है । अस्त्रो के विद्वान् मार्सेल के श्री बरसी (M. Vars) ने मु निश्चित रूप से बताया है कि मि (जिप्ट) में इस शब्द का यही अर्थ है, और वास्तव में एक बक्स में बन्द आयताकार संग्रहपुस्तक का द्योतक है । १ इसका एक उदाहरण कमाल पर लेख में मिलेगा। २ न्यूबोल्ड ( Newbold ., Essay on the netrical composi- tions of the Persians( फ़ारस वालों को छन्दोबद्ध रचनाओं पर निबन्ध ) । 3 इस प्रकार का एक उदाहरण मोर तक्नों की रचनाओं में पाया जाता है, कलकते ा संस्करण, पृ० ८७५, जिसका हर एक छन्द बदल जाता है। कमाल ने अपने तकिरा में हसन की एक कविता उद्धृत की है, जिसकी रचना १७ अन्दों या चार पंक्तियों के छन्दों में हुई है, जिनमें से पहली तीन उर्दू और मैं अंतिम झारसी , एक विशेष तुक में है ।