पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/११६

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भूमिका [ ८ ‘बैत’। यह शब्द 'शेर' का समानार्थवाची है, औौर एक सामान्य पद्म का द्योतक है ; किन्तु उसका एक आर्थिक विशेष अर्थ भी , और जिसे कभीकभी दो अलग-अलग पंक्तियों बाला छन्द कहते हैं, क्योंकि उसमें दो मिसरा होते हैं । वइ हिन्दुई के दोहा' या 'दोहरा’ के समान हैं। 'मध( Madh )-प्रशंसा-प्रशंसात्मक कविता जिसका यह विशेष शIषक हैं । मन्त्रा, प्रशंसा । यह वह शीर्षक है जो किसी व्यक्ति की प्रशंसा में लिखी गई कुछ कविताओों को दिया जाता है । मर्सिया, picede ‘शोक ', अथवा ठीक-ठीक विलाप गीत , मुसलमान शहीदों के संबंध में साधारणतः चार पंक्तियों के पचास छन्दों में रचित काय । में ये विलाप गीत अकेले व्यक्ति द्वारा गाए जाते हैं जिसे उस हालत में बालू' -बाँह—कहते हैं, किन्तु टेक जो हर एक छन्द के अंत में आती है मिलकर गाई जाती है, और जिसे ‘जवा भी'--उतार कहा जाता है । निर्मित गीतों को ‘हंदी’ ( Adi )Sरयोहार—सामान्य -नाम दिया जाता है और वे मुसलमानी तथा हिन्दुओं के त्योहारों के अवसरों पर गाए जाते हैं ।' - ५ ‘बैत' का ठीक ठीक अर्थ है खेभा, और फलतः ‘घर, और उसी से एक खेमे के दो द्वार हैं जिन्हें 'मिसरा' कहते हैं, इस प्रकार पथ में इसी नाम के दो मिसरे होते हैं । २ इन विलाप गांतों पर विस्तार मेरों -Mmoire sur la religiou mu sulmane dans ly Inde’ ( भारत में मुसलमानों धर्म का विवरण ) में, और बिंद्रा मठथारी बरनी ( Bertrand ) द्वारा अनूदित * sdances de Hailari' ( हैदरों से भेंट ) में देखिए। 3 इसका एक उदाहरण एच० एस० रोड (Reid) कृत ‘रपोर्ट ऑन इडिजेनत ऐजूकेशन( देशों शिक्षा पर रिपोर्ट ) में पाया जाता है, मगरा१८५२, ० ३७ ।