पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/११७

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० 7 हिंदुई साहित्य का इतिहास मसनवीर 1 अरबी में जिन पद्यों को मुकुंदविज्ञ' कहते हैं उन्हें फ़ारसी और हिन्दुस्तान में इस प्रकार पुकारा जाता है । ये दोनों शब्द मिसरोंके बोड़ों से सार्थक होते हैं, और वे पद्यों की इस श्रृंखला का द्योतन करते हैं जिनके दो मिसरों की आपस में तुक मिलती है, और जिसकी एक प्रत्येक पत्र में बदलती है, या कमसेकम बदल सकती है ।’ इस रूप में ‘वश्य ज या ‘पन्दनामें, उपदेशात्मक कविताएँकिसी भी प्रकार की सत्र लम्बी कविताएँ और पद्यात्मक बन लिखे जाते हैं । उन्हें प्रायः खण्डों या परि च्छेदों में बाँटा जाता है जिन्हें ‘बाघन --दरवाजा, या ‘फ्रल'भाग कहते हैं ? पिछला शब्द हिन्दुई कविताओं के ‘कांड' की तरह है। मुआ म’ -पहेली, विशेष प्रकार की छोटी कविता । मुबारकबद ' । बधाई और प्रशंसा संबंधी काव्य को यह नाम दिया बाता है । हिन्ई में ‘बधावा' के समानार्थवाची के रूप में उसका प्रयोग इाता है ! मुमतात’ (Mucatta at)—क्रटी हुमा - अत्यन्त छोटी पंक्तियों की छोटी कविता । ‘मुसम्मत, अर्थात् फिर से जोड़ना’ इस प्रकार उस कविता को कहा जाता है जिसके छन्दों में से हर एक भिन्न-कान्त होता है, किन्तु जिनके अंत में एक ऐसा मिसरा नाता है जिसकी तुक अलग-अलग रूप में मिल जाती है, और जो क्रम पूरी कविता के लिए चलता है । उसमें प्रति छन्द में तीन, चार, पचछ, सात, आठ और दस मिसरे होते हैं, औौर जो फलतः सुसलस, मुरब्यr, मुलम्मस, ‘मुसद्दसर‘मुसब्बा, ‘मुस- न’ और मुशर’ कहे जाते हैं ! मुख़म्मस का बहुत प्रयोग होता है । १ से 16onins' नमक लेटिन पत्रों की तरह है । अँगरेजी उपासनापद्धति में इसी प्रकार के बहुत हैं। । २ ‘गुलदस्ता-६ निशात' में इस प्रकार की पहेलियाँ बहुत बड़ी संख्या में मिलती हैं, ० ४४४ !