पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/११८

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अमिका [ १ कभीकभी किसी दूसरे लेखक की गजल के आधार पर इस कविता की रचना की जाती है । । उस समय छन्द के पाँच मिमरों में से अंतिम दो मिसरे गजल को हर पंक्ति के होते हैं । इस प्रकार पहले की वही तुक होती है जो गजल की पहली पंक्ति की, स्थानुसार जिसके दो मिसरों की थापस में तुक मिलनी चाहिए । दूसरे छन्द तथा बाद के छन्दों में, पढ़ले तीन मिसरों की गज़ल की पंक्ति के पहले मिसरे से तुक मिलती है, पंक्ति जो छन्द में चौथी हो जाती है ; और पाँचवें मिसरे की तुक बही होती है, यहाँ तक कि म्लम्मस के अंत तक, जो पहले छन्द की होती है, यह तुक वही होती है जो गज़ल की । ‘मुस्तज़ाद, अर्थात् और जोड़ना’ ।ऐसा उस गजल को कहते हैं जिसकी हर एक पंक्ति में एक या अनेक शब्द जोड़े जाते हैं जिसके बिना या सहित कविता पढ़ी जा सकती है ।' इस रचना से एतरज ( incidence ) या हशो ( lling up ) नामक अलंकारों का विकास हुआ है, और जो, रुचिपूर्ण व्यक्तियों की प्रशंसा प्राप्त करने के लिए बह होना चाहिए जिसे ‘इशो मलीद’ (beautiful filling-ap) कहते हैं । 'मौजूद । यह शब्द हमारे notls ( क्रिसमससंबंधी ) नामक गीतों की तरह है । वास्तव में यह मुहम्मद के जन्म के सम्मान में भजन है । ‘रिसाला’ । इस शब्द का ठीक-ठोक अर्थ है पत्र, जिसका प्रयोग पद्य या गद्य में छोटी-सी उपदेशात्मक पुस्तक के लिए होता है, और जिसे हम ‘किता’ शब्द के विपरीत एक छोटी-सी किताब’ कह सकते हैं। : १ औी द सैसी (M. de Sacy) ने उदाहरण के लिए फारसी की एक सुन्दर रुवाई दो हैं ('इन द सावाँ, Journal des Savant, जनवरी१८२७। वली की रचनाओं में अनेक मिलते हैं, मेरे संस्करण के ६० ११३ और १ १४ । २ ‘Rher des nat, mus. R मुसलमान जातियों का काव्यशाम )पर मेरा तीसरा लेख देखिए० १३० ।