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नामों के हिज्जे ऐसे मिलेंगे जो हिन्दी या उर्दू भाषाभाषियों की दृष्टि से स्पष्टतः अशुद्ध हैं। ऐसे अनेक शब्दों और लगभग सभी यूरोपीय व्यक्तिवाचक नामों को रोमन लिपि में लिख दिया गया है ताकि कोई भ्रम न रह जाय। जहाँ मैंने अपनी ओर से कुछ कहा है उसका द्योतन 'अनु॰' शब्द से हुआ है।
कुछ असाधारण परिस्थितियों के कारण कवियों और लेखकों तथा सभी ग्रन्थों की अनुक्रमणिका प्रस्तुत अनुवाद के अंत में नहीं दी जा सकी। मुख्य भाग (अ से ह तक) में उल्लिखित कवियों और लेखकों की सूची तो प्रारम्भ में दे दी गई है। अनुवाद के मुख्य भाग (अ से ह तक) में आए केवल ग्रन्थों, पत्रों और प्रधान यूरोपीय लेखकों की अनुक्रमणिका अन्त में है।
अनुवाद में विस्तृत टीका-टिप्पणियाँ देने का भी विचार था, क्योंकि कुछ तो स्वयं तासी ने अशुद्धियाँ की हैं और कुछ नवीनतम खोजों के प्रकाश में उनकी सूचनाएँ पुरानी पड़ गई हैं। किन्तु एक तो पुस्तक का आकार बढ़ जाने के भय से और दूसरे इस विचार से कि खोज-विद्यार्थी अपनी स्वतन्त्र खोज के फलस्वरूप निष्कर्ष निकालेंगे ही, टीका-टिप्पणियाँ देने का विचार छोड़ दिया गया।
तासी ने हिन्दी-उर्दू के मूल ग्रन्थों का अवलोकन करने के साथ-साथ भारतीय तथा यूरोपीय विद्वानों द्वारा निर्मित संदर्भ-ग्रन्थों का आश्रय भी ग्रहण किया था। जिन लेखकों और उनके संदर्भ-ग्रन्थों का उन्होंने उपयोग किया उनमें से प्रमुख ग्रन्थ इस प्रकार हैं :
- १. जनरल हैरियट : 'मेम्वार ऑन दि कबीरपंथी'
- २. एच॰ एच॰ विल्सन : 'मेम्वार ऑन दि रिलीजस सेक्ट्स ऑव दि हिन्दूज़'
- 'मैकैन्ज़ी कलेक्शन की भूमिका'