पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४५

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‘११८ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास मारतवर्ष के नरेश, आवफल भी, अपने राज्य के सबसे अधिक प्रसिद्ध, या अधिक कृपापात्र, कवियों को, या तो मुसलमान उपाधि ‘मै यद उश्शु। आप’-कवियों का सिरताज, या ‘मलिक उश्शु' अरा--कवियों का बाद- शाह, या हिन्दू उपाधि कबेश्वर ’ -कवियों का सिरताज, ‘बर कवि ’-श्रेष्ठ कवि, श्रादि प्रदान करते हैं । जिन हिन्दुओं में उर्दूमें लिखा है उन्होंने ‘तख़त्स’ ग्रहण करके की मुसलमानी प्रथा स्वीकार की है, और क्योंकि ये काल्पनिक उपनाम सामान्यतः फ़ारसी से लिए जाते हैं, जो भारतवर्ष के मुसलमानों की साहित्यिक भाषा है, दोनों धर्मों के कवियों द्वारा समान तक़ल्लुस ग्रहण किये जा सकते हैं, औौर, पल त, जब ये रचयिता केवल उपनामों से पुकारे जाते हैं, यह जानना कठिन हो जाता है कि वे हिन्दू हैं या मुसलमान हैं। लेखकों में, मुसलमान हो गए कुछ हिन्दु मिलते हैं, किन्तु कोई मुसलमान ऐसा नहीं मिलता जिसने हिन्दू धर्म स्वीकार कर लिया हो, जब तक कि वह किसी उन सुधारवादी संप्रदाय में प्रवेश न करे, उदाहरणार्थ जैसे सिक्खों का, जो अपना धर्म स्वीकार करने वाले मुसलमानों को मज़गी कहते हैं । वास्तव में मुसलमान से हिन्दू होने में अवनति करना है, जब कि हिन्दू से मुसलमान होना स्पष्टत: उन्नति करना है, क्योंकि ईश्वर की एकता और सविंध्य जीवन में विश्वास उसका ाधार है । इसके अतिरिक्त भास्त के मुसलमानों में विवेक प्रवेश नहीं कर पाया, वे अचे भी अपने धर्म के लिए अत्यन्त उत्साही हैं, यद्यपि व्यवहार में वह हिन्दू धर्म द्वारा विकृत ही हो गया हो, और वे प्रतिदिन लोगों को मुसलमान बनाते हैं । इस प्रकार इंम हिन्दू कवियों को इस्लाम धर्म स्वीकार करते हुएसंसार से विरक्ति वार करते और अपनी कविताओं में ईश्वर की एकता गाते हुए देखते हैं । अन्य के अतिरिक्त मुज्तर (लाला कुंवर सेन) ऐसे ही हैं जिन्होंने सुन्दर हिन्दुस्तानी कब्रेिताओं में उस त का अधिक प्रचार किया है जिसे सुसलमान हुसेन का आत्मलिदान' कहते हैं ।