पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१४६

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[ ११६ हिन्दुस्तानी लेखकों में हमें कुछ हिन्दू ऐसे भी मिलते हैं जिन्होंने ईसाई मत स्वीकार कर लिया है, और साथ ही, अत्यन्त असाधारण और कम सुनी जाने वाली बात कि, कुछ मुसलमान ईसाई हो गए हैं ! जोवनी लेखक शेफ़्त ( Schefta ) ने मुसलमान से ईसाई होने वाले शौकत उपनाम के एक उद्णु कवि का उह लेख करते समय जो कहा है वह इस प्रकार हैं : कहा जाता है कि शौकत, बनारस में, एक यूरोपियन के अत्यन्स घनि७ठ मित्र थे, और जिसके कद्देने में इस्लाम धर्म छोड़कर वे ईसाई हो गए । ईश्वर ऐसे दुर्भाग्य से बचाए ! फलतः उन्होंने अपना नाम मुनीफ़ अलीग-—अली द्वारा उत्साहित, के स्थान पर बदल कर मुनी मसीह ईसा द्वारा उत्साहित, रख लिया है । ऐसी हालत में, नाम का परिवर्तन प्रायः हमेशा हो जाता है । एक और हिन्दुस्तानी कवि ने, जिसका नाम ‘ज़ मुहम्मद-मुहम्मद को कृपा, था, ईसाई होने पर अपना ‘लकव’ ‘मसीह--मसीह की कृपा रख लिया । किन्तु प्रारंभिक ईसाइयों में इस बात का अनुकरण होते हुए भी, ईसाई बने हिन्दू मूर्तिपूजकों जैसा अर्थ रखने पर भी अपने नाम सुरक्षित रखते थे । हमारे अत्यधिक प्रसिद्ध सामयिकों में यही करने वाले बाबू गमेन्द्र मोहन टैगोर हैं, जिनका मैंनेअपने १८६८ के प्रारभ के भाषण में, उल्लेख किया है, जिन्हें ईसाई धर्म स्वीकार करने का मूल्य, अपने मूर्तिपूजक रह गए पिता की ओर सेमिला उत्तराधिकार का अपहरण । मूल तकिरों में ऐसे हिन्दुस्तानी कवियों में कुछ मूलतः यहूदियों का उल्लेख मिलता है जो मुसलमान हो गए थे । ऐसे हैं मेरठ के जमाल ( श्र ली ), जो लगभग साठ वर्ष की अवस्था में हैदराबाद में रहते थे ; दिलो के जवाँ ( मुहिउल्लाह ), रोजगार से चिकित्सक, कविता की। दृष्टि से इश्क के शिष्य ; और एक संग्रह के रचयिता, मुश्ताक ।