पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१५०

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[ १२ जाते हैं । हिन्दुस्तानी के कई लेखक इस संप्रदाय से संबंध रखते हैं , ऐसे हैं : हाजी अब्दुल्ला, हाजी इस्माईलतथा अन्य कई जिनका मैं अवसरा-- नुकूल उल्लेख करू गा । हिन्दुस्तानी के लेखकों में मुसलमान दार्शनिकों या सूफ़ियों की, जिनमें ’ अनेक प्रसिद्ध सन्त हैं : भिक्षुक कवियों को, जो न केवल स्वेच्छा से बने या फ़कीर हैं, वरन् सचमुच मि क हैं, जो बाज़ार में, अलगअलग कागजों पर, अपनी रचनाओं में से कविताएँ, बेचने आते हैं, एक बहुत बड़ी संख्या बराबर पाई जाती है। दिल्ली के मकारिम (मिर्जा ) और कमतरीन ( मियाँ ) उपनाम पोरवाँ मैं ऐसे ही थे, जो, उर्दू मुल्ला’ में, दो पैसा ( दस साँतीम के लगभग ) प्रति कविता के हिसाब से, श्रेलगअलग काग़ज़ों पर अपनी गजलें बेचने स्वयं आते थे । इन भिक्षुक कबियों के साथ-साथ हमें मिलते हैं पेशेवर कवि, अर्थात् वे साहित्यिक व्यक्ति जो केबल काव्य -रचना में लगे रहते हैं, फिर अब वर्गों के शौकिया कवि, और इसी प्रकार निम्न वर्ग के लोगों में, और अंत में दशह कवियों को एक अच्छी संख्या मिलती है जिनकी कविताओों के बारे में कहा जाता है : ‘बादशाहों की बातें बातों में बादशाह होती हैं । ।' के इस प्रकार के कवि हैं, गोल कुण्डा के जिन तीन बादशाहों का मैं उल्लेख कह चुका हूं उनके अतिरिक्त, बीजापुर का बादशाह, इब्राहीम आदिल शाह, मैसूर का राजाअभाग टीपू, मुग़ल सम्राट् शाइ आलम द्वि तीयअकबर द्वितीय और बहादुर शाह द्वितीय, मैं उनकी मृत्यु ११६८ ( १७५४५५ ) में हुई। जहाँ तक उनकी मालीशान उपाधि ‘खाँ' से संबंध हैं, जैसा कि मैं कह चुका हैं, भारत में वह पठानों या अफ़गानों को दी जाती है, और वास्तव में हमारा कवि अफगान था। २ पोछे दिखाया जा चुका है कि दिल्ली का बाज़ार इसी नाम से समझना चाहिए। 3 फ्रांसीसी सिक्के फ्र क का सौवाँ हिस्सा अनु० ४ हिन्दुस्तान की प्रारंभिक गति पर १८५१ का भाषण।