पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१५२

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[ १२५ का नाम है। वे नवाब हुसम उद्दौला के हरम में थीं, और कासिम ने उन्हें उर्दू ’ कवियों में रखा है। एक फ़रह (Farh) खुशी—फ़रहबख़्श-खुशो की दी हुई-नामक एक नर्तकी का उदाहरण भी मिलता है जिसने हिन्दुस्तानी में काव्य-रचना की । शेफ़्त ने ज़िया-चमक--नामक एक और नर्तकी का उल्लेख किया। हैऔर इश्की ने मंच ( Ganchin ) नामक एक तीसरी का । एक चौयी नर्तकी ने, हिन्दुस्तानी के कवियों को भाँति, पूलिखित से बहुत अधिक ख्याति प्राप्त करती है, वह है फर्रुखाबाद की जाना ( मीर यार अली जान साहिब )किन्तु जो ख़ास तौर से लखनऊ में रही, जहाँ उसे साहित्यिक सफलता प्राप्त हुई । बचपन से ही उसने संगीत और साहित्य का अभ्यास कियाऔर वह फ़ारसी समझ लेती है । हिन्दतानी में कविता की और उसकी विशेष रुचि है और जीवनलेखक करीम उसे अपनी उस्तादिन समझते हैं, और उन्होंने अपनी खास कविताओं के संबंध में उससे परामर्श किया । उसने१२६२ ( १८४६ ) में, लखनऊ से एक दीवान या अपनी कविताओं का संग्रह प्रकाशित किया है जिसे काफ़ी सफलता प्राप्त हुई है और को जनानों की विशेष शैली में लिखा गया है, उस समय उसकी अवस्था अतीस वर्ष के लगभग थी । मुझे अभी एक हिन्दू महिला कवयित्री, नारनौल की, रामजी, उपनाम 'नज़ाकत-सुकुमारता—जिसको आश्चर्यजनक प्रतिभा और मौकिक सौंदर्य के संबंध में मूल जबनीग्रंथों में अतिशयोक्तिपूर्ण वाक्य भरे पड़े हैं, और जो १८४८ तक जीवित थी; तस्वीर, जिप्स नाम का अर्थ है चित्र, अर्थात् एक चित्र की भाँति सुन्दर या सप्तर्षि-मंडल ; यात-dqses poir—तथा इस ग्रंथ में उल्लिाखत अन्य अनेक का और उल्लेख करना है । उपर्युक्त संक्षिप्त रूपरेखा से मेरी रचना के मुख्यांश के विषयों की एक झलक मिलती है जिसके लिए मैं विद्वानों की कृपा का वाकांक्षी हैं,