पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१५४

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द्वितीय संस्करण की तीसरी जिल्द (१८७१) से विज्ञप्ति दो महासरों के समय अनुपस्थित रहने के बाद मैं पेरिस लौटा; महासरों के समय नृशंस अत्याचारियों का शासन था जिन्होंने, तिरंगे झडे में, अन्य दो रंगों से घिरे हुए,हमारे बादशाहों के सफ़ेद झंडे के स्थान पर लाल झंडा स्थापित किया है, जो, प्रतीत होता है, अंत में पहले द्वारा हटा दिया जायगा, और ऐसे स्मारकों के, जिन पर .फ्रांस को गर्व हो सकता है, और असंख्य व्यक्तिगत जायदादों के नष्ट या विकृत करने में ही संतोष न कर जिन्होंने बेगुनाह और संभ्रान्त व्यक्तियों का वध करने में नीचता प्रदर्शित की है, विशेषतः हमारे प्रसिद्ध श्रार्च-बिशप दरबोय ( Darboy ), मधुर वक्ता श्रवे दगेरी ( Abbe Deguerry ), विद्वान् समापति बौ़ज़ाॅं ( Bonjean ) का, जो सब मेरी तरह, नए संप्रदाय द्वारा अन्यायपूर्वक निन्दित, फ्रांस के पुराने चर्च से संबंधित थे, मैं कह रहा था, पेरिस लौटने पर, इस रचना की तीसरी और अंतिम जिल्द जिसमें,मानव जातियों में छठा स्थान रखने वाली आधुनिक भारतीय जाति के साहित्यिक इतिहास का अधिकांश है, की दस महीने तक मजबूरन बन्द कर दी गई छपाई को फिर से शुरू करने के लिए उत्सुक रहा हूॅं । लेखकों की तालिका उसी समय छप चुकी थी जब कि जीवनी-संग्रह।

द्वितीय संस्करण की दूसरी जिल्द में कोई भूमिका नहीं है ।

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