पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१५५

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१२८ ] हिंदुई साहित्य का इतहास 'स्माइ दिलकुशा का द्वितीय भाग मुझे प्राप्त हुआ था जिसके प्रथम भाग का विश्लेषण मैंने इस जिल्द के ३५३ तथा बाद के पृष्ठों में किया है । अपनी विद्वतापूर्ण कृतियों के लिए अन्य के अतिरिक्त भारतवासियों में प्रचलित अंतिम संस्कारों के संईध में खोज के लिएमथुरा के प्राचीन प्रस्तरलेवों की व्याख्या के लिएबंगाल आदि के पुस्तकालयों के संस्कृत इस्तलिखित-थों के संबंध में सूचनाओं के लिएप्रसिद्ध बाबू राजेन्द्रलाल मित्र यह हस्तलिखित ग्रंथों वाला भाग भेजने के लिए राजी थे, किन्तु उनके थ-लेखक पिता को मृत्यु से उसकी छई रुक जाने के कारण, बाबू ने उसे जारी रखना उचित नहीं समझा । इस भाग में तीन ने तेरह रचयिता श्रों पर विचार किया गया है, जिससे मुद्रित प्रन्थ की भूमिका में घोषित सात सौ, जिनमें से तेईस कवयित्रियाँ हैं, पूरे हो जाते हैं । जिनका उल्लेख इस इतिहास में नहीं हुछा उनको सूचीफ़ारसी व्णमल के क्रमानुसार, इस प्रकार है। : (५५ उर्दूकवियों और १७ उर्दूकवयित्रियों के नामों की सूची—अनु०) मैं पूना’ ( Pina ) के शम्ल ( Schamla ) कृत ‘बरा-इ अहार’ जिसे लेखक ने ‘फ़सना सहर '-फ़साने का सहर-के नाम से भी पुकारा है, के मंगलवाक्यों में से कुछ पत्रों के अनुवाद से इसे समाप्त करता हूँ : ( अनुवाद ) x पेरिस१५ अक्टूबर, १८७९