पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१५७

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हिंदुई साहित्य का इतिहास २. श्री बील ( Beale ) और मन्नूलाल की सहकारिता में हिन्दी में ‘हिन्दी सिलेबस’ ( ISyllabus of Na tural Philoc. sophy’ ), आगरा । अग्रदास’ एक वैस्नव ( या वष्णव ) संत हैं जो संस्कृत में लिखित ‘भक्त माल’ के प्रथम मूल पाठ के, जिसका अनुवाद और अनकरण विकास और परिवर्द्धनहिन्दी और उर्दू में, अनेक रचयिताओं द्वारा हो चुका है, निर्माता प्रतीत होते हैं, जिससे उसका हिन्दुई में लिखा जाना नहीं रुकता—जो अत्यधिक संभव बात है 1 इसके अति रिक्त कृष्णदास के भक्त माल’ में उनका उल्लेख इस प्रकार है : छप्पण श्री अग्रदास हरि भजन त्रिजन काल था नहिं बित्तयो । सदाचार ज्यों संत प्रीति जैसे करि आये। सेवा सुमिरण सावधान चरण राव चित लाये । प्रसिद्ध बारा सों प्रीति सुरुथ कृत करत निरंतर । रसना निर्मल नाम मनो वर्षत धाराधर । श्री कृष्णदास कृपा करों भक्तदत्तमन बच क्रम करि अटल दियो । श्री अग्रदास हरि भजन बिन काल सुथा नहिं बिता । टाक नाभा जी ने कहा है : श्री अमदास हरि भजन चिन काल था नर्ति चितयो ।’ १ हि० ‘अप ( Agra ) नगर का सेवक २ नाभा जो, नियाद्दासलाल जो, ग़मानो लाल और तुलसीराम पर लेख देखिए । 3 ‘भक्तमाल' की अंधारभूत पंक्तियों के रचयिता, और जो, ऐसा प्रतीत होता है, प्रत्येक छप्पय की प्रथम और अंतिम पंक्तियां है। छप्पय को अन्य पंक्तियोंजैसा कि पिछले पाठ और पृथ्वीराज पर छप्पय से प्रमाणित होता , कृष्णझास कृत हैं।