पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१६१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ प्रमाणित है।
६]
हिंदुई साहित्य का इतिहास

गए सुंदर भावों के लिए प्रसिद्ध, कुछ का अनुवाद पाया जाता है। उनमें से सती पर दो इस प्रकार हैं:

'सच्ची सती वह नहीं है जो अग्नि की ज्वाला में नष्ट हो जाती है, हे नानक[१]! सच्ची वह है जो शोक में मरती है।

'जो स्त्री अपने पति से प्रेम करती है वह उसके बाद जीवित न रहने के लिए अग्नि-ज्वालाओं के प्रति अपने को समर्पित कर देती है। आह! यदि उसके विचार उसे ईश्वर तक उठा देते हैं, तो उसका कष्ट मधुर हो जाता है।'

अर्जुन[२] मल (गुरु)

सिक्खों के पाँचवें गुरु और नानक[३] के चौथे उत्तराधिकारी, बड़े चौपेजी लगभग १३०० पृष्ठों के 'आदि ग्रंथ' नामक वृहत् संग्रह, जो नानक और उनके उत्तराधिकारियों की धार्मिक कविताओं का संग्रह है, के निर्माता हैं। उसमें भगत या संत अथवा केवल भाट या कवि, कहे जाने वाले भाट या कवियों की कविताएँ संग्रहीत हैं। संस्कृत[४] में लिखे गए कुछ अंशों को छोड़कर, वे सब उत्तर की हिन्दी में लिखी गई हैं।[५] ग्रंथ की विषय-सूची का विस्तृत विवरण इस प्रकार है:[६]


  1. इस विस्मयादिबोधक चिह्न के बाद, ग़ज़लों में जैसा पाया जाता है, ऐसा प्रतीत होता है, कि ये पंक्तियाँ नानक की हैं।
  2. इन्द्र के पुत्र और कृष्ण के मित्र तीसरे पाण्डव का नाम
  3. उनका विस्तृत विवरण जे॰ डी॰ कनिंघम कृत 'हिस्ट्री ऑव दि सिक्ख्‌स' (सिक्खों का इतिहास) में देखिए।
  4. जे॰ डी॰ कनिंघम, 'हिन्ट्री ऑव दि सिक्ख्‌स', पृ॰ ३६८
  5. भारतवासियों ने नानक की बोली (भाषा) में लाहौर के दक्षिण-पूर्व के प्रदेश की प्रान्तीयता पाई है, किन्तु अर्जुन की बोली (भाषा) अधिक शुद्ध है।
  6. वैसे तो मैं अपनी 'रुदीमाँ ऐंदुई' (हिन्दी के प्राथमिक सिद्धांत) में उसके संबंध में काफ़ी कह चुका हूँ, किन्तु जे॰ डी॰ कनिंघम कृत 'हिस्ट्री ऑव दि सिक्ख्‌स' के आधार पर मैं कुछ और निश्चित बातें यहाँ दे रहा हूँ।