पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१६९

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१४ ? हिंदई साहित्य का इतिहास सूर्य का पुराणशीर्षक है और जो १७८६ शक संवत् (१८६४) में आगरे से छपा है । कर जिन्हें अबुल फजल ने एकेश्वरवादी (I unitaire) कहा है, एक प्रसिद्ध सुधारक, और अत्यन्त प्राचीन हिन्दी के लेखकों में से भी हैं और जिस भाषा में उन्होंने हमें महत्वपूर्ण रचनाएँ दी हैं । इस असिद्ध व्यक्ति के संबंध में हिन्दुई के आदरणीय ग्रन्ध) ‘भक्तमाल' में मिलता है यहीं दिया जाता जो पौराणिक लेख वह सर्व प्रथम है : छपय कवीर कानि राखी नहीं अश्रम पट दशनी 73 भक्ति विमुख जो धर्म सो अधर्म करि गा।यो । योग यश बतदान भजन बिन तुच्छ दिखायो । हिंदू तुरक* प्रमान रमैनी सवदी सी ।" से प्रायः, कबर इस्व ‘ए' के साथ, किन्तु विकृत रूप में लिखा मिलता है, किन्तु स्पष्टत: यह अरवो माषा का एक विशेषण शब्द है जिसका अर्थ है ‘बड़ा, और जो नाम अलाह को, जो सबसे बड़ा है, दिया जाता है। कौर अपने को कबीर दास भी कहते , जो अरदी-भारतीय मिश्रित शब्द है, जिसका अर्थ है 'ईश्वर का दाम्स'। २ कबोर की प्रशंसा में यह एक लोकप्रिय कविता, एक प्रकार का भजन है । इस कवित को भूल' नाम से कहा जाता है, और जो नाभा ज। को रचना बताई जाती है । इसके विस्तार का लेख ‘वीका’ नाम से पुकारा जाता है ' दे रहा मैं यहाँ जो अनुवाद ईं वह कृष्णदास रचित है । 3 यह सब जानते हैं कि हिन्दुओं में छः दार्शनिक पद्धतियाँ हैं, और जिनकी अनेक प्रन्यों में व्याख्या हुई है। ४ मूल में मुसलमानों को ‘ए’ कहा गया है, जैसा कि यूरोप में साधारण बोल चाल की भाषा में कहा जाता है । ऐसा प्रत'त होता है कि यह नाम भारतवर्ष में सामान्यतः प्रचलित है। ऊिदवो के विरुद्ध ब्यंग्य में दा ने एक बनिए की क्री के मुख से भी यही शब्द कहलाया है। ५ बबीर द्वारा रचित कविताओं के विशेष नाम।