पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

१८] हिंदुई साहित्य का इतिहास दिलाता है " कबीर ने उत्तर दिया मैं बाज़ार जाता हूं, और तुम्हारे लिए कोई चीज़ लागा 1 तघ कबीर भयभीत होते हुए बाजार गए और वहाँ मृथ्वी पर लेट रहे । ईश्वर ने कबीर के नए चिह्न धारण किए औौर वे इतना यधिक रुपया लेकर उनके घर गए कि उन्हें उसे एक बैल पर लादना पड़ा। उसे उन्होंने ब्राह्मणों में बाँट दिया; तत्पश्चात् कीर को उसकी सूचना दे, उन्हें बाजार से घर भेज दिया और कबीर भी अपने घर पहुँच कर उसे बाँटते रहे । इसी बीच में उनकी ख्याति नगर में फैल गई । उनके दरवाजे पर लोगों की भीड़ लगातार जमा रहने लगी, तक उन्हें यहाँ कि अपने भक्ति-कार्य करने तक का समय न मिल पाता था । जब सिकन्दर पादशाहसिंहासन पर बैठातो सब ब्राह्मण कबीर की मनी जाने वाली माता के, जो मुसलमान थी, पास गए और उसे अपने समय राजदरवार में ले गए । वहाँ पहुँच कर यद्यपि दिन था, एक मशाल जला कर, बहू सुलतान के सामने चिल्लाने लगी : “हुजूर यापके राज्य में अंधकार छाया हुआ है, क्योंकि मुसलमान हिन्दुओं की कंठी और दिलक ारण करते हैं, यह संकट है ।’ सुलतान ने कबीर को बुला भेजा और उन्हें उसके सामने पहुँचने में देर न लगी । लेागों ने उनसे कहा सलाम क'। उन्होंने उत्तर दियाः “मैं तो राम को जानता हूँ, सलाम से मेरा क्या कामी 1 जत्र सुलतान ने ये अशिष्ट शब्द सुने तो उसने कबीर को उनके ७ पादशाह, जो फ़ारसी शब्द है, की उपाधि मुसलमान सम्राों को दो जाती है। सिकन्दर, जिसका उपनाम, उसकी जाति का नाम, ‘लोदी’ है, वास्तव में दिल्ली का, धर्म से मुसलमान, पठान राजा था । २ इन शब्दों का खेल समझने के लिए यह जानना आवश्यक है कि 'सलाम ' अभिवादन के लिए मुसलमानों द्वारा प्रयुक्त होता है, और राम’ ( विष्णु के एक अवतार का आम ) इसी दृष्टि से हिन्दुओं द्वारा प्रदत होता है । यह दूसरा शब्द, जो एक -कार से धर्म संबंधी है, स्पेन के कैथोलिक अभिवादन के समान है : 'Ave, Maria'