पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७४

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

क्रवीर [ १६ बैर जंजीर में बाँध कर गंगा में बहा देने की आशा दी। ऐसा ही किया गया, किन्तु कबीर आश्चर्यजनक रूप में पानी से निकल आए । फिर उन्हें भाग में डाला गया, यह भी व्यर्थ सिद्ध हुया । उन्हें मार डालने के जितने भी साधन ग्रहण किए गए वे सब निरर्थक साबित हुए । उन्हें हाथी के पैरों के नीचे डाला गया । पशु उन्हें देखते ही चिंघाड़ा और भाग गया । तब रजा अपने से के हाथी उतर, और कभीर पैरों पर गिर उनसे कहने लगा : ‘भगव, मेरी रक्षा करो। मैं नाप को ज़मीन, गाँव जो आप चाहें ढूंगा’’ । कबीर ने उसे उत्तर दिया : ‘मेरा धन यम है; इन सत्र नशबान् वस्तुओों से क्या लाभ जिनके पीछे लोग अपने पुत्रअपने पिता, अपने भाई से ल कर मर जाते हैं ? जब कबीर अपने घर लौटे तब सत्र साधुओं ने उन्हें प्रसन्न लौटते हुए पाया । इसके विपरीत जो उनके विरोधी थे वे अत्यन्त क्षुब्ध हुए, किन्तु कबीर को पीड़ित करने के लिए ब्राह्मणों ने जो कुछ साधन ग्रहण किए थे, वे सत्र असफल रहे । तब उन्होंने उनकी जाति में ही उनकी ख्याति चिंगाड़ने की सोची । फलतः चार ब्राह्मणों ने भुछःदाढ़ी मुड़ाई, घासन पास के वैष्णवों को पत्र लिखेऔर एक विशेष दिन उन्हें निमंत्रित क्रिया । तदनुसार जब वैष्णवों का समुदय इक ट्ठा होने लगा, उनमें से एक कबीर से ने ही कार का घर माँगा, किन्तु कबीर चुपके से कहीं चले गए , नौर जाकर किसी स्थान में छिप रहें । तत्र राम कबीर के रूप में आवश्यक धन लेकर भोजन बाँटने गए । तीन दिन तक जो लोग उपस्थित थे उन सत्र को वे भोजन में सन्तुष्ट करते रहे, और अंत में वै50व का रूप धारण कर, कवीर को वापिस मेज अंतर्धान हो गए । कबीर ने अवसरानुकूल कार्य किया, सब वैष्णवों के साथ आदरपूर्ण व्यवहार कर उन्हें विदा किया । एक दिन जब असगएँ कवीर को डिगाने आईउन्होंने उन्हें ये पंक्ति याँ गाकर सुनाई ।