पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७५

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२०] हिंदुई साहित्य का इतिहास पद। तुम घर जाबौ मेरी बहिना । यहाँ तिहारा लेना न देना राम बिना गोबिंद विना विष लाधू ये बैना। जगमगात पट भूषण सारी उर मोलिन के हार । इन्द्रलोक ते मोहन आई मोहिं करन भरतार । इन बात को छाँह देदू री गोविंद के गुन गाव। तुलसी' माला क्यों नहीं पहिये बेगि परम पद पाबौ । इन्द्रलोक में वोट पो हैं हमसों और न कोई । तुम तो हमें डिगावन आई जादू देह की खोई बहुते तपसी वाँधि बिगये कच्चे सूत के धागे । जो तुम यतन करो तेरा जल में आागि न लागे। हो तो केवल हरि के शरणें तुम तौ ऋी माया । गुरु परताप साधु की संगति मैं परम पद पाया । नाम कत्रीर जाति जुलाहा ग्रह बन रहाँ उदासी । जो तुम मान महत करि आई तो इक माइ दृजे मासी । संक्षेप में अप्सराओं ने व्यर्थ ही हाकभाव प्रकट किएसफलता न मिल सकने पर उन्हें निराश होकर वापिस जाना पड़ा । ‘जब कबीर मरणासन्न के थे, तो हिन्दुओं ने कहा कि उन्हें जलाना चाहिए : मुसलमानों ने कहा कि दफ़नाना चाहिए । वे अपना कपड़ा ओोढ़ कर सो गए ( मृत्यु को प्राप्त हुए )। उनकी मृत्यु का समाचार सुन दोनों दल आपस में झगड़ने लगे अंत में वे शव के पास गए और कफ़ना 3 Ocymum Sanctumहिन्दुओं के घरों में पवित्र पौधा । २ बनीर ने यहाँ जो कहा है उसके उदाहरण रूप में, स्वर्गीय शेजी ( Ch ry ) द्वारा अनूदितErmitage de Kandowशीर्षक के अंतर्गत, संस्कृत का एक रोचक किस्सा देखिए, 'जून पशियातीक' (Journal Asiatique, वर्ष १८२२। . यह पद तासी से शब्दश: अनुवाद नहीं है, किन्तु भकमाल' की ‘भक्ति रस बोषिनी टीका' ( नवलकिशोर प्रेसलखनऊ, १८८३ ई० ). से लिया गया है। तासी द्वारा दिए गए पद के प्रच अनुवाद और इस पद में कोई विशेष अंतर नहीं है।

  • ‘शीर औइना’ शब्द थे ।