पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१७८

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कबीर ( २३ शिष्य थे, जिनमें से धर्मदास' का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है । वे अपने शिष्यों को साध( पवित्र ) कहते थे , उनकी इच्छा थी कि वे अपनी भक्ति के पूर्णत्व में समान हों । गोरखपुर के समीप मगर या मगहर में कबीर की स्मृति में जो मुसलमानी स्मारक है बह नवाब फ़दी खाँ ( Fadi khaa ) द्वारा बनवाया गया था, जो लगभग दो सौ वर्ष हुएगोरखपुर का शासक था । यह स्मारक एक मुसलमान द्वारा रक्षित रहता है जिस कार्य से मिली आमदनी पीढ़ी दर पीढ़ी चलती है । अक्सर यहाँ अनेक यात्री आते हैं, जो स्पष्टतकबीर की निधनतिथि पर लगे मेले के अवसर पर लगभग पाँच हज़ार हो जाते हैं। बनारस के हिन्दू स्मारक के संबंध में भी यही बात है ? ‘बीजक' में पाई जाने वाली गोरखनाथ से कबीर की बात चीत ( ‘गोष्ठी' ), का, जिसका पाठ कैप्टेन डब्ल्यू प्राइस कृत ‘हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स, जि० पहली, १४० तथा बाद के पृष्ठ, में दिया गया है, मैं अनुवाद देना चाहता था ; किन्तु मैंने उसे छोड़ दिया है, क्योंकि इस अंश पर न तो राजा विश्व- मित्र सिंह कृत टीका’ और न कोई दूसरी चीज मिल सकी, जिसकी कबीर की इस क्लिष्ट शैली के लिए प्रायः आवश्यकता पड़ती है । कबीर ने न केवल हिन्दी में लिखा ही, वरन् इस सामान्य भाषा के प्र योग पर जोर दियाऔर उन्होंने संस्कृत तथा’ पंडितों की अन्य सब भाषाओं का विरोध किया । १ उन पर लेख देखिए। २ माँगोमरी मार्टिनईस्टर्न इंडिया, जि० २, ३० ३६३ और ४६१ वे यह विल्सन द्वारा ‘एशियाटिक रिसों', जि० १७४० १८, में उकृत हुई है।