पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१८४

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कबीर [ २६ इस सुधारक की रचनाओं से, जरनल हैरिअट द्वारा अनूदित, कुछ पंक्तियाँ इस प्रकार हैं : ‘भौतिक इच्छात्रों से मवेटित आत्मा को कौन प्रभावित कर सकता है १.."कहो वह कौन सा देश है जे लोगों ने नहीं देखा, वह मूर्खता का है । वे कडुवा नमक खाते हैं, और वे बेचने जाते हैं। कपूर । एक पंक्ति का आधा हिस्सा ही बहुत है, यदि उस पर अच्छी तरह विचार किया जाय । पंडित की पोथियाँजिनका रातदिन गान किया जाता है, मैं क्या ? जिस प्रकार दूध उत्तम मक्खन देता है, उसी प्रकार कबीर की आधी पति चारों वेदों के बराबर हैं । एक छोर लेाग ईश्वर को ‘हर' नाम से पुकारते हैं, दूसरी ओर ‘अलाद' के नाम से : ध्यानपूर्वक तू अपने हृदय को टटोल, वहाँ तू . हर एक चीज़ पायेगा। ..... एक कुरान पढ़ते हैं, दूसरे शस्त्र से ईश्वर की मावना से पूर्ण गुरु द्वारा शिक्षा लिए विना, तुम जान बूझकर जोवन नष्ट करते हो। विचार कर औीर जो कुछ व्यर्थ है उसे उठाकर एक ओर रख दे, तत्र तुझे सचा दर्शनशास्त्र प्राप्त होगा । माया को छोड़, और तू कोई कठिनाई न पावेगा..ऐसा कोई स्थान नहीं जंचे ईश्वर न हो । लेग एक झूठा नाम जानते और उसे मानते हैं, सल्य के रूप में । जब तारे चमकते हैं, सूर्य छिप जाता है । इसलिये जब आामा चिन्तन करती है, तो मिथ्या नष्ट हो जाता है । १ वही । कवोर की रचनाओं से लंबे उठ्र ण प्रोफ़ सर विल्सन द्वारा दिए गए हिन्दू संप्रदायों के विवरण (मैग्वायर) में भी मिलते हैं, ‘एशियाटिक रिसर्बज', जि० १६।