पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१९३

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३८ ] हिंदुई साहित्य का इतिहास कि तुम्हारे जैसे जो भी काले (या भूरे ) रंग वाले हैं छली होते हैं। इसलिए यह न समझो कि हमारा अभिवादन कर तुम अच्छे लगने लगोगे । जैसे तुम बिना किसी के हुए एक फूल से दू सरे पुल पर जाते हो, उसी प्रकार वे भी सब वनिताओं के प्रति प्रेम का प्रमाण देते हैं। औौर होते किसी के नहीं । कृष्णदाल एक धार्मिक पुस्तक, प्रेम सत्य निरूपण' के भी। लेखक हैं । श्री विल्सन के संग्रह में देवनागरी अक्षरों में इस रचना की एक प्रति है । व्यूमैन ने एक कृष्णदास, वैद्य, का उल्लेख किया है जो 'चैतन्य चरितामृत'चैतन्य की कथा का अमृत के रचयिता हैं; और जो यही कृष्णदास मालूम पड़ते हैं। यह रचना, जो प्राकृत की कही गई है , अर्थात् संभवत: हिन्दी की, एक वैष्णव सुधारक की कथा और उसके सिद्धान्तों से सम्बन्धित है । बैंगला में भी एक इसी शीर्षक और इसी विषय की रचना है ।' चैतन्यजिनका जन्म १४८४ में नादिया ( Naddya ) में , हुआ था, अपने को कृष्ण भगवान का अवतार कहते थे। उन्होंने एक प्रकार की क्रांति उत्पन्न की जिसने बैंगाल की एक-चौथाई जन संख्या उनके की किया उन्होंने को संप्रदाय ओर आकृष्ट । ब्राह्मणों के जारीपनबलिदानोंवर्गभेद का विरोध किया और संस्कृत के स्थान पर सामान्य भाषा प्रयोग कियामें का । बेंगला लिखित पुस्तकों के रूप में इस संप्रदाय वालों का साहित्य प्रचुर मात्रा में है; १ ‘सत्व निरूप' । यदि, जैसा कि मेरा विचार , यह हैअंतिम शब्द संता है । इस शोषक का मुझे अर्थ प्रतःत होता है प्रेम की श्रेष्ठता की खोज । क्या यह रचना २१०० ( मूल्य के अनु० ) पर उल्लिखित ‘सत्य निरूपणरचना ही तो नहीं है ? ३ माँगोमरी मार्टिन‘ईस्टर्न इंडिया, जि० २, ७० ७५५ ४ जे० लगडेलिप्टिव कैलौच ऑव बंगाली बुक्स, पृ० १०२