पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/१९६

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केशववास [ ४१ ब्राह्मण जाति के एक प्रसिद्ध लेखक हैं जो सोलहवीं शताब्दी के अंत और सत्रहवीं शताब्दी के प्रारंभ में, जहाँगीर और शाहजहाँ के राजत्व-काल में, विद्यमान थे । उन्होंने अपने पत्रों में अनेक प्रकार के छन्दों का प्रयोग किया है । वे रचयिता हैं : १ राम पर ‘रामचन्द्रिका शीर्षक'एक काव्य के 1 श्री विल्सन के अनुसार यह काव्य 'रामायणका एक संक्षिप्त अनुवाद है, अर्थात् संभवत: वाल्मीकि की संस्कृत ‘रामायणका । उसमें उतलीस अध्याय हैं और वह संवत् १६५८ (१६०२ ई॰ ) में लिखी गई थी। श्री रीड (Reid ) ने उसे ‘रामायण गीता’ से भिन्न साना है; .२. ‘कवि प्रिया के, अर्थात् कवि के , संस्कृत प्रणाली के अनुसार काव्य-रचना संबंधी शाख पर सोलह पुस्तकों ( अध्याय अनु- ) में एक प्रबंध है । यद्यपि उसकी रचना विक्रम संवत् १६५८ या १६०२ में हुई होगी तो भी, श्री विल्सन के अनुसार, बह एक सुनिश्चित तिथि के लिए प्राचीनतम हिन्दी ग्रंथों में से है। इसी भारतीयविद्याविशारद के पास अपने सुन्दर संग्रह में उसकी एक प्रति है, वह चौपेजी और नागराक्षरों में है । उसकी प्रतियाँ ब्रिटिश म्यूजियममैकेन्जी संग्रह तथा अन्य स्थानों पर भी हैं: ३. हिन्दू काव्यशाब संबंधी काव्यव्याख्या ‘रसिक प्रिया’ के, अर्थात् रसिक के सुग्व. या ‘रस प्रियाने -अच्छे रस का प्रिय— १५६२ ई० में लिखी गई थी; ४ बॉर्ड द्वारा अपने हिस्ट्री ऑव दि लिट्रेचर ऑव दि १ ३० ‘एशियाटिक रिसचेंज’, जि० १०, ० ३३६; 'रूई कलेक्शन’ जि० २, ० ११३, त्राउटन, ‘पॉप्यूलर हिन्दू पीस्ट्र’, पृ० १४और बार्ड, जि० २, ६० ४८० २ रामचन्द्रिक Raiayade 3 श्री मार्टिनईस्टर्न इंडिया, जि० १, पृ० १३१