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हिंदुई साहित्य का इतिहास

है;क्योंकि वह स्वयं नहीं आाता, किन्तु मुझे लिख कर सन्तुष्ट हो जाता है। विरह की राते उसकी जुल्फ़ों की तरह लम्बी हैं, और संयोग के दिन जीवन की भाँति छोटे। आह ! रातें मुझे बुरी लगती हैं, हे मेरी सखियो,जब कि मैं अपने प्रियतम को नहीं देख पाती ! यकायक, सैकड़ो छल-छन्दों के बाद, उसकी नज़र ने मेरे हृदय को सुख और शान्ति पहुँचाई है। क्या तुम में से कोई ऐसी नहीं है जो मेरे प्रियतम को मेरा संदेसा सुना सके? खुसरो, मैं कयामत के दिन के मिलन की सौगन्ध खाती हूं, क्योंकि मेरा न्याय छल है, हे मेरे प्रियतम,मैं उन शब्दों को न खोज पाऊँगी जिन्हें मैं तुमसे कहना चाहती हूँ।’

खुसरो का उपनाम ‘तुर्कउल्लाह' है। उनका जन्म ६३१ (१२३३) में हुआ था । ऐसा प्रतीत होता है कि वे भारतवर्ष में पैदा नहीं हुए थे, वरन् चंगेज खाँ के समय में उन्होंने यहाँ जीवन व्यतीत किया। ‘आतश कदा' (Atasch Kada) तथा अन्य आधारों,उनकी क़ब्र पर खुदी मृत्यु-तिथि, आदि [१]के अनुसार उनकी मृत्यु ७२५ (१३२४-१३२५ ) में हुई, न कि ७१५ में। मेरे स्वर्गीय विद्वान् मित्र एफ़० फ़ॉकनर (F. Falconer) ने अमीन अहमद राजी कृत ‘हफ़्त इकलीम ' ( Haft iclim )–सात जलवायु - अर्थात् संसार के भाग –शीर्षक फ़ारसी कवियो के जीवनी ग्रन्थ में यह लिखा पाया है कि एक पुस्तक में खुसरो ने अपने बारे में कहा है कि मेरे छन्दों की संख्या पाँच लाख से कम, किन्तु चार लाख से अधिक है।

खुसरो ने कभी-कभी अपनी कविताओं में ‘सुलतानी' उपनाम ग्रहण किया है।

खुसरों की फ़ारसी रचनाओं में, द' हरबेलो (d' Herbelot)


  1. स्प्रेंगर , 'ए कैटलौग ऑव दि लाइब्रेरोज ऑव दि किंग ऑव अवध, ४६५ तथा बाद के पृष्ठों में इस कवि के बारे में रोचक विस्तृत विवरण देखिए और उसकी कब्र के बारे में, 'आसार उस्तनादोद में, जूर्ना एसियातोक' (एशियाटिक जर्नल), १८६० -१८६१,