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गिरधर या गिरिधर लाल या ज्यू (महाराज)

है और जो २५७ पृष्ठों के लंबे आकार में १९१४ (१८६८) में उनके पुत्र बाबू हरिचन्द्र द्वारा प्रकाशित हुआ है।

गिरधर या गिरिधर लाल[१] लाल या ज्यू [२](महाराज)

एक प्रसिद्ध ब्राह्मण सन्त थे, 'भक्तमाल’ में उनका इसी प्रकार उल्लेख है, और जो सत्रहवीं शताब्दी के आरंभ में जीवित थे।[३]वे राधा और कृष्ण की प्रशंसा में लोकप्रिय गीतों के रचयिता हैं, जिनमें कवित्त हैं, दोहे हैं और एक बंघेलखंड की बोली में लिखित कुंडलिया है, जो स्वर्गीय श्री जे॰ रोमर (Romer) ने मेरे पास भेजी थी और जिसका अनुवाद मैं यहाँ देता हूँ:

'मेरा प्रियतम सोने की खोज में गया है;यहाँ से जाते समय वह इस देश को अपनी उपस्थिति से शून्य कर गया है।

उसे सोना मिल गया है और वह वापिस नहीं आया, मेरे बाल पक गए हैं, और अपनी सुन्दरता के विलीन हो जाने से मैं रोती हूँ।

मैं दु:खी अपने घर में बैठी हूँ, (अपने दुःख के कारण) सब लज्जा छोड़ चुकी हूँ, और वह वापिस नहीं आया।

गिरधर कवि कहते हैं, बिना राई और नमक के सब बेखाद है। जब जवानी बीत जायगी,तब सोना लाने से क्या लाभ।

जाना ही पड़ेगा; मैं यहाँ इंतज़ार में नहीं रुक सकती। बीस बार जाना भी अच्छा।

एक यह सेज, ये गहने और मेरा पान! आह! कौन है जो मेरे सिर के बाल सुलझाएगा?'

ब्राउटन ने इस कवि का एक और लोकप्रिय गीत


  1. भा०वह'जो पर्वत धारण करता है'।यह शब्द, जो कि कृष्ण के नामो मे से एक है, वार्ड द्वारा, 'व्यू ऑन दि हिंदूज', जि॰ २, पृ॰ ४८१ में, बँगला उच्चारण के आधार पर, 'गिरिधरो'लिखा गया है।
  2. आदरसूचक उपाधि 'जी' के दूसरे हिज्जे।
  3. गिलक्राइस्ट,'हिंदुस्तानी ग्रैमर',पृ०३३५