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गुजरती

नास से वार्ड ने ( अपने 'हिस्ट्री ऑव दि लिट्ररेचर एट्सीटरा ऑव दि हिन्दूज', जि० २, पृ० ४८१ ) ‘कुंडरिया’ के रचयिता के रूपमें उल्लेख किया है, रचना जिसके विषय से मैं परिचित नहीं हूं, किन्तु जो बघेलखण्ड की हिन्दुई बोली में लिखी गई है।

गुजराती

शाह अली गुजराती[१] दरवेश रचयिता हैं :

१.एक ‘दोहरा’ या ‘दोहरे'[२] शीर्षक रचना के, जो तसव्वुफ, अध्यात्म,[३]पर हिन्दी कविताओं का संग्रह है।

२.एक सुन्दर सिंगार’[४] शीर्षक धारण करने वाली रचना के। यह दूसरी रचना भी, सी० स्टीवार्ट [५] के अनुसार, विभिन्न विषयों पर रचित हिन्दुस्तानी कवित्ताओं का संग्रह है; किन्तु मेरा विचार है कि यह तो एक प्रकार का 'कोक शास्त्र' है जैसा कि एक और हिन्दी रचना यही शीर्षक धारण करती है और जिसका उल्लेख मै सुन्दरदास के विवरण में करूँगा।किन्तु हो सकता है यह एक कहानी हो और 'सुन्दर सिंगार' नायक का नाम हो; क्योंकि सर डब्ल्यू ०आउज्ले (Sir W.Ouseley) के हस्तलिखित पोथियों के सूचीपत्र में नं० ६१३ पर एक 'किस्सा-इ सुन्दर सिंगार' शीर्षक जिल्द है। ईस्ट इंडिया हाउस[६] में अंतर्वेद की बोली,अर्थात् शुद्ध ब्रजभाषा,


  1. और भी अच्छा'गुजराती,' गुजरात का निवासी।
  2. 'दोहरा' का बहुवचन 'दोहरे',हिंदी शब्द जो 'दैत'(पद्य)का समानार्थ-वाची है।
  3. तसव्वुफ़ (फ़ारसी लिपि से)
  4. 'सुंदर सिंगार'।स्टीवार्ट(stewart),पृ०१८० मे'सिन्दुर सिकार'(Sindur Sirkar)के रूप मे विगाड़ कर लिखा है।
  5. वही
  6. लाडेन संग्रह(Fonds Leyden) नं०xxx