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हिंदुई साहित्य का इतिहास

में लिखित 'सुन्दर सिंगार' नामक एक हस्तलिखित ग्रंथ सुरक्षित है, और मैं सर डब्ल्यू० आउजू्ले के सूचीपत्र मे नं० ६२२ पर यही शीर्षक धारण किए हुए एक जिल्द पाता हूँ और जिसमें ( उसके) नागरी और एक भाखा या हिन्दवी बोली में लिखे जाने का संकेत है।अथवा ये अंतिम दो जिल्दें, जो एक ही रचना की दो प्रतियाँ प्रतीत होती हैं शाह गुजराती की, जिसने दक्खिनी बोली में लिखा होगा, क्योंकि जैसा कि उसके नाम से संकेत प्रकट होता है, वह गुजरात में उत्पन्न हुआ था, रचना से नितान्त भिन्न हो!

गुर-दास[१] वल्लभ (भाई)

एक सिक्ख लेखक हैं जिन्होंने नानक के धर्म पर सुन्दर कविताएँ लिखी हैं। इन कविताओं में से कुछ का अनुवाद माल्कम कृत 'ऐसे ऑन दि सिक्ख्स’, १५० तथा बाद के पृष्ठ, और कनिंघम कृत'हिस्ट्री ऑव दि सिक्ख्स’, ५० तथा बाद के पृष्ठ, और ३८६ तथा बाद के पृष्ठ,में हैं।

इन कविताओं में गुर-दास ने नानक को व्यास और मुहम्मद का उत्तराधिकारी बताया है, और उन्हें संसार में पवित्रता और धार्मिकता स्थापित करने वाला, और झगड़े तथा विरोध उत्पन्न करने वाले विभिन्न धर्मों और संप्रदायों में धार्मिक एकता विशेषतः हिन्दू धर्म और इस्लाम में एकता,उत्पन्न करने वाला बताया है।

गुलाब शंकर

बरेली की तत्व बोधिनी पत्रिका’ –बुद्धि के तत्व की पत्रिका–शीर्षक साप्ताहिक हिन्दी पत्रिका के संपादक हैं।


  1. भा०गुरु-दास–के स्थान पर गुर-दास।भाई गुर-दास का मतलब है 'गुर-दास जो भाई है।'