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गोकुल-नाथ

‘महाभारत’[१]और ‘हरिवंश'के अंश, हैं। यह ज्ञात है कि ‘महा- भारत में पाण्डव और कौरव कुमारों के, जो जन्म से चचेरे भाई और हस्तिनापुर के सिंहासन के लिए एक दूसरे के प्रतिद्वंद्वी थे, संघर्ष का अद्भुत विस्तार है। पिछले पहले वालों पर विजयी हुए और पहले वालों को कुछ समय के लिए छिप जाने पर बाध्य किया जब कि उन्होंने पंजाब के एक शक्तिशाली राजकुमार से संधि स्थापित की और जब कि राज्य का एक भाग उन्हें दे दिया गया। बाद में पाण्डव इस भाग को जुए में हार गएऔर उन्हें फिर निर्वासित होना पड़ा, जहाँ से वे शस्त्रों द्वारा अपने अधिकार की रक्षा करने के लिए प्रकट हुए।भारतवर्ष के तमाम राजकुमारों ने प्रतिद्वन्द्वी कुटुम्बियों में से एक या दूसरे का पक्ष लिया; कुरुक्षेत्र, आधुनिक थानेश्वर,में लगातार युद्ध हुएआखिर में उनका अंत दुयोधन और अन्य कौरव कुमारों की मृत्यु में और पांडव भाइयों में सबसे बड़े युधिष्ठिर के भारतवर्ष के चक्रवर्ती सम्राट के रूप में उदय होने में हुआ [२] 'हरिवंश' में कृष्ण की कथा है; श्री लाँग्लवा ( M. Langlois ) द्वारा वह संस्कृत से फ्रांसीसी में अनूदित और ग्रेट ब्रिटेन और आयरलैंड की कमिटी ऑव ऑॉरि-एंटल ट्रांसलेशन्स की अध्यक्षता में प्रकाशित हो चुका है।

‘महाभारत’ के और भी हिन्दुस्तानी अनुवाद हैं।जो मेरे जानने में आए हैं वे हैं : १. 'किताब-इ-महाभारत',जिसका एक भाग फरजाद कुली के पुस्तकालय में था; २.वह संपादन जिसका


  1. डा०फोर्ब्स(उनके सूचीपत्र का नं०२५७के पास 'सौप्तिक पर्व'शीर्षक दशम पर्व की एक हस्तलिखित प्रति है,९६फोलिओ पृष्ठ, प्रत्येक पृष्ठमे१४पंक्तियांँ
  2. श्री आइशहॉफ (Eichhoff) को'Poesie heroique des Indiens'(भारतीय वीर काव्य)शीर्षक रचना, पृ०२०,मे 'महाभारत'का विश्लेषण पाया जाता है जिसका यहाँ मैंने एक संकेत मात्र दिया है।