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हिंदुई साहित्य का इतिहास


३.‘जुगल किशोर विलास'–युवा कृष्ण की राधा के साथ क्रीड़ाएँ–गोकुलचंद पर लेख में उल्लिखित।

४.‘सरस रंग’--अच्छा स्वाद(रंग)।

५. उन्होंने अपने पिता विट्ठलनाथ जी, जिनका दूसरा नाम श्री गोसाई जी महाराज है, के दो सौ बावन अनुयायियों के संक्षिप्त विवरण भी दिए हैं–रचना जिसका एक उद्धरण पूर्वोल्लिखित रचना में पाया जाता है, पृ०९२ तथा बाद के पृष्ठ।

गोपाल[१]

आगरे के प्रधान स्कूल के छात्र, आगरे से मुद्रित,चालीस हिन्दी दोहों में नीति वाक्यो के संग्रह,'शिक्षा चातुर्य',के रचयिता हैं।

गोपाल चंद्र(बाबू)

एक उच्चवंशीय हिन्दू , का जन्म जनवरी,१८३४ में हुआ था और मृत्यु मई, १८६१ में। इस थोड़े-से समय में उन्होंने अनेक ग्रंथों की रचना या संग्रह किया जिनकी एक सूची मुझे उनके सुयोग्य पुत्र, बाबू हरिचन्द्र,से प्राप्त हुई है जो उनमें से कुछ तो प्रकाशित कर चुके हैं और कुछ को प्रकाशित करने वाले हैं।

बारह वर्ष की अवस्था में उन्होंने हिन्दी कवितों में संस्कृत से वाल्मीकि कृत 'रामायण'और 'गर्ग संहिता’ का अनुवाद किया।[२]

उनके द्वारा लिखित अन्य हिन्दी रचनाओं की सूची इस प्रकार है और जिसमें से पहली दस विष्णु के अवतारों से सम्बन्धित हैं:

'मत्स्य कथामृत'—मत्स्यावतार की सुधा;

'कच्छ कथामृत'—कच्छपावतार की सुधा;

'बाराह कथामृत'—वाराहावतार की सुधा;


  1. भा०'गो पालक',कृष्ण का नाम
  2. और भी देखिए, इस प्रसिद्ध हिन्दू के संबंध मे मैंने१८६८ के प्रारंभ के अपने भाषण(Discourse)मे जो कुछ कहा है, पृ०४८,४९।