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गोबिंद रघु-नाथ थत्ती

सहिंत, काव्यशास्त्र पर रचनाएँ, १८६६ में बनारस से मुद्रित, बाईस-बाईस पंक्तियों के २२ चौपेजी पृष्ठ।

गोबिन्द रघु-नाथ थत्ती (बाबू)

दो पत्रों के संपादक हैं जो बनारस के 'मतबा बनारस अखबार' नामक छापखाने से मुद्रित होते हैं।उनमें से प्रसिद्ध पत्र ‘बनारस अखबार' शीर्षक के अन्तर्गत प्रकाशित होता है जो हिन्दी तथा देवनागरी अक्षरों में लिखा जाता है।कहा जाता है कि नेपाल के राजा, जिनकी धर्मपत्नी बनारस में रहती है, इसकी आर्थिक सहायता करते हैं। इस पत्र के प्रत्येक अंक में संपादक न्यायशास्त्र के संस्कृत ग्रन्थों का अनुवाद देते हैं।

उसी छापेखाने से गोबिंद रघु-नाथ उर्दू में लिखा गया 'बनारस गजट' भी प्रकाशित करते हैं, जो प्रत्येक सोमवार को, दो कॉलमों में ८पृष्ठों के कॉपीबुक के आकार के चौपेजी पृष्ठों में निकलता है। इन दोनों पत्रों में वे ईसाई धर्म-प्रचारकों के विरुद्ध हिन्दूधर्म का समर्थन और पादरियों द्वारा बनारस में स्थापित स्कूलों का विरोध करते हैं। छापे की दृष्टि से ये दोनों पत्र अच्छे निकलते हैं।

मई, १८५४ से ये बाबू साहब ‘आफ़ताब-इ हिन्द’–भारत का सूर्य –शीर्षक उर्दू पत्र के संपादन में काशी-दास मित्र के उत्तरा-धिकारी भी हुए हैं।

फिर, जिस छापेखाने का हमने उल्लेख किया है, उसी से १८५० में प्रकाशित हुए हैं :

१. हिन्दी में, ‘विचित्र नाटक’ शीर्षक के अंतर्गत, सिक्खों का इतिहास, जिसका अनुवाद कैप्टेन जी एम्॰ सिडन्स ने किया है;[१]

२.'शरण्य नीति'–शरणागत को सलाह–शीर्षक एक ग्रन्थ;


  1. देखिए,'जर्नल एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल,१८५०,पृ०५६३