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चंद या कवि चंद और चन्दर भट्ट

पृथ्वीराजा,का इतिहास। छंदों में लिखित इस रचना मे जो भारत में प्रचलित परंपरा के अनुसार है, राजपूताना, और विशेषतः चन्द के समय, का इतिहास है, इतिहास जिसमें लेखक ने काफ़ी प्रमुख भाग लिया । यह निश्चित रूप से हिन्दी की अत्यन्त प्राचीन रचनाओं में से एक हैं।चंद पिथौरा या पृथ्वीराजा के यहाँ कवि थे जिसका उन्होंने अनेक राजपूत वंशों के साथ गुणगान किया है।अस्तु, वे १२ वीं शताब्दी के अन्त में विद्यमान थे। मेजर कोफ़ील्ड ( Caufield ) द्वारा प्रदत्त इस रचना की एक हस्तलिखित प्रति लंदन की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है, और एक प्रति मैकेन्ज़ी के हस्तलिखित पोथियों के संग्रह में थी।[१] रूसी भाषा के एक विद्वान, रॉबर्ट लेन्त्ज ( Robert Lenz ) ने उसके एक अंश का अनुवाद किया था जिसे वे सेंट पीटर्सबर्ग से लौटने पर १८३६ में प्रकाशित कराने वाले थे; किन्तु इस नवयुवक विद्वान् की असामयिक मृत्यु ने प्राच्यविद्याविशारदों को इस रोचक ग्रन्थ से वंचित रखा । रॉयल एशियाटिक सोसायटी वाली हस्तलिखित प्रति पर एक फ़ारसी शीर्षक दिया हुआ है जिसका आाशय है पृथुराज का इतिहास, पिंगल भाषा में ( अर्थात् भारतीय छन्दों में ), कवि चंद बरदाई द्वारा'। स्वर्गीय जेम्स टॉड ने अपने राजस्थान के इतिहास के लिए इस काव्य-रचना से एक बड़ा अंश लिया।[२]उन्होंने उसके एक बड़े अंश का अनुवाद भी किया था; किन्तु मृत्यु हो जाने के कारण न तो वे अपना कार्य पूर्ण कर सके और न उसे प्रकाशित कर सके। वे केवल इस ऐतिहासिक काव्य- रचना के “The Vow of sangopta' अर्थात् संगोष्त का


  1. 'मैकेन्जी कलेक्शन'जि०२,पृ०११५
  2. देखिए, श्री द सैसो(M. de Sacy)कृत' जूर्ना दै सावाँ' (le Journal des Savants),१८३१,पृ० ४२० मे लेख।