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हिंदुई साहित्य का इतिहास

प्रथम शीर्षक महत्वपूर्ण प्रसंग का अनुवाद प्रकाशित कर सके थे; किन्तु उन्होंने उसकी प्रतियाँ केवल कुछ मित्रों को ही दी थीं । ‘एशियाटिक जर्नल' की नवीन माला की २५ वीं जिल्द में यह अनुवाद फिर से छपा है। इसके अतिरिक्त लेखक की काव्य-रचना के संबंध में उन्होंने जो कुछ कहा है, वह इस प्रकार है[१] :

"चंद की रचना जिस समय यह लिखी गई थी उस काल का एक सामान्य इतिहास है। पृथीराज के शौर्य से संबंधित उनहत्तर समयों के एक लाख छन्दों में राजस्थान के प्रत्येक राजवंश का उसके पूर्वजों सहित थोड़ा-थोड़ा वर्णन हुआ है।फलतः वे सभी जातियाँ जो अपने को राजपूत नाम की अधिकारिणी समझती हैं। इस रचना को मुहाफ़िजखानों में सुरक्षित रखती हैं।......पृथीराज के युद्धों, उसकी सन्धियाँ, उसके अनेक तथा शक्तिशाली सहायक राज्य, उनके महल और उनकी वंशावलियाँ चंद के उल्लेखों को इतिहास और भूगोल के लिए बहुमूल्य बनाती हैं, यद्यपि पौराणिक कथा, रीति-रस्मों आदि के लिए भी.....।"

मेरे विचार से यह लेखक चंद्र या चंद्रभाट के नाम से भी उल्लिखित किया जाता है, और उसकी रचना ‘पृथूराज राजसू' [२]अर्थात् पृथ्वीराजा का महान् यज्ञ, शीर्ष के अंतर्गत।

वॉर्ड ने अपने ‘हिस्ट्री ऑफ दि लिट्ररेचर ऐंड माइथॉलोजी ऑफ दि हिन्दूज, जि०२,पृ०४८२ में इस रचना को कन्नौज की हिंदी बोली में लिखा गया बताया है।

मेरे विचार से यह वही रचना है जिसका ‘पृथीराजा भाषा’ शीर्षक के अंतर्गत कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के मुखपत्र[३] में और उसी सोसायटी की पुस्तकों के सूचीपत्र में ‘पृथी, अथवा


  1. 'ऐनल्स ऐंड ऐंटिकि्वटोज ऑव राजस्थान',जि०१,पृ०२५४
  2. 'पृथूराज राजसू '(फ़ारसी लिपि से)
  3. १८३५,पृ०५५