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हिंदुई साहित्य का इतिहास

लम्बे उद्धरण सुनाए जो उसे कंठस्थ थे और जो उसने दूसरे भारतवासियों से गाते हुए सुन रखे थे, क्योंकि वह पढ़ना नहीं जानता था।साथ ही वीरों के वीरता-पूर्ण कृत्यों– जिनका केन्द्र रजवाड़ा था, के वर्णन अब भी लोगों की स्मृति में ताजा हैं; क्योंकि वहाँ एक अशिक्षित और साधारण हैसियत का व्यक्ति है जो इस प्रसिद्ध राजपूत कविता को स्वाभाविक भावुकता के साथ बड़े जोश से गाता है, और वह भी एक कृत्रिम शैली में।

यद्यपि चंद की कविता हिन्दुई या पुरानी हिन्दी में लिखी गई थी, तो भी उसमें मिल गए कुछ फ़ारसी और अरबी शब्द मिलते हैं; ऐसे शब्द हैं ‘आतश'-आग,'मारूफ'–प्रसिद्ध, 'शिताब'—तेज, ‘सरदार'–नेता, ‘कोह'--पहाड़,आदि।

यह कहा जा चुका है कि राजपूतों की यह जातीय कविता कुछ भागों में भारत में प्रकाशित हो चुकी है [१];किन्तु सबसे अधिक निश्चित जो बात है वह यह है कि यह कार्य अभी होने को था और हिन्दुई साहित्य का यह अभाव अंत में विद्वान श्री बीम्स द्वारा पूर्ण होने को है[२]'।हमारी यह प्रार्थना है कि यह शुभ कार्य सफलतापूर्वक समाप्त हो और ऐतिहासिक और भाषा विज्ञान की दृष्टि से इतनी महत्वपूर्ण कविता के पूर्ण अनुवाद के साथ उनके इस कार्य का अंत हो।

कवि चंद की एक और रचना 'जयचंद्र प्रकाश' – जयचंद्र का इतिहास –है। पहली की तरह यह भी कनौज बोली में लिखी गई हैऔर साथ ही वार्ड द्वारा इसका उल्लेख भी हुआ है। स्वर्गीय सर एच० इलियट का विचार था कि चंद कृत ‘जय चंद्र-प्रकाश’ कोई स्वतंत्र रचना नहीं है, वरन केबल ‘पृथ्वीराज चरित्र’


  1. 'जर्नल रॉयल एशियाटिक सोसायटी',१८५१,अगस्त अंक, पृ०१९२
  2. इस विषय के संबंध मे मैंने १८६८के प्रारंभ के अपने 'Discourse (भाषण )मे जो बातें कही है उन्हें देखिए, पृ०४९ तथा बाद के पृष्ठ।