पंढरपुर के निवासी एक हिन्दी-लेखक हैं जो शिवाजी के राजत्व काल में रहते थे। विठोबा के उपलक्ष्य में उन्होंने एक 'अभंग' की रचना की है और भक्तों के आनन्द के लिए एक अत्यधिक आध्या-त्मिक ग्रन्थ की।
जिन्हें लोग ‘ज्योतिषी’ नाम से विभूषित करते हैं, संवत् १९२५ (१८४७ ई॰ ) के वर्ष के लिए 'पंचांग' के रचयिता हैं, जो 'सत्य संघ'(Association of Tuth) के तत्वावधान में आगरे से प्रकाशित हुआ है।
इस नाम के अन्य अनेक भारतीय पंचांग हैं, जिनमें से एक इंदौर से १८४९ में प्रकाशित हुआ है और वह अत्यन्त बड़े-बड़े पाँच भागों में विभाजित है।
रामसनेहियों के आध्यात्मिक गुरुओं में दूल्हाराम के उत्तराधिकारी, 'दूल्हाराम' में जो कुछ कहा गया है उसके अतिरिक्त एक हजार शब्दों के रचयिता हैं, जिन्हें, कहा जाता है, उनकी इच्छा थी कि कोई न लिखे।
'विजय मुक्तावली' विजय के मोतियों की माला–शीर्षक हिन्दी में एक संक्षिप्त ‘महाभारत’ के रचयिता हैं, २२४ अठपेजी पृष्ठों में प्रकाशित; आगरा१८६९।