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हिंदुई सहित्य का इतिहास
    '       जगजीवन-दास
यह सतनामो संप्रदाय के संस्थापक का नाम है|जन्म से वे क्षत्रिय थे। वे अवध मे उत्पन्न हुए थे,और उनकी समाधि लख़नऊ और अवध के बीच कटवा में अब भी है|जीवन भर वे गृहस्थ रहे|उन्होंने कई पुस्तिकाएँ लिखी हैं जो सब हिन्दी छन्दों में हैं ।

पहली का शीर्षक ‛प्रथम ग्रंथ’या पहली पुस्तक है|यह शिव और पार्वती के बीच वार्तालाप के रूप में एक पुस्तिका है।

दूसरी का शीर्षक 'ज्ञान प्रकाश' या ज्ञान की अभिव्यक्ति है|यह ईसवी सन् १७६१ में लिखी गई थी । 

 तिसरी का शीर्षक ‘महाप्रलय' या महा विनाश है|श्री विल्सन'द्वारा परिचित कराया गया एक छोटा-सा उद्धरण यहाँ दिया जाता है : 
 

पावन पुरुष सब के बीच रहता है,किन्तु वह सब से दूर रहता है| उसे किसी के प्रति मोह नहीं होता|वह जानता है कि वह जान सकता है,किन्तु वह खोज नहीं करता|वह न जाता है न आता है; वह न सीखता है न सिखाता है,वह न चिल्लाता है न आहें भरता हैं,किन्तु वह अपने से तर्क करता है|उसके लिए न सुख है न दु:ख, न दया है न क्रोध,न मूर्ख है न विद्वान्; जगजीवनदास एक ऐसे पूर्ण व्यक्ति को जानना चाहते हैं,जो मानव स्वभाव से पृथक् रहता है,और जो व्यर्थ की बातों में समय व्यतीत नहीं करता ।'

               जगनाथ
 पृथीराज के शत्रुमहोबे के राजा के यहाँ चारण,अकबर के
 

१.अग्जॉबंदास, ‘ईश्वर ( संसार का जीवन ) का दास २.'एशियाटिक रिसर्बज", जि० १७, ७ ३०४ ३.भा० ‘संसार का राजा,विष्णु का एक नाम) जो इस नाम के अंतर्गत उड़ीसा की ओर एक प्रसिद्ध मंदिर में पूजे जाते हैं ।