पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२३२

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' जगरनाथ प्रसाद [७७ शासन काल में,जो १५५२ से १६०५ तक रहा,जीवित थे|चंद ने जितनी उनकी काव्य-प्रतिभा की प्रशंसा की है, उतनी ही राजा के प्रति भक्ति की,जिनके लिए वे लड़ते-लड़ते मारे गए|

ये वही कवि हैं जिनका‘राज-सागर’ में ‘जगन्नाथ’ नाम से उल्लेख हुआ है|इसका भी मतलब वही है जो जग नाथ का।
                 जगरनथ-प्रसाद

माखनलाल की सहकारिता में ‛भागवत पुराण’के हिन्दी गद्य में अनुवाद के रचयिता हैं जिसका नवल किशोर ने‘सुखसागर’ शीर्षक के अन्तर्गत १८६४ में लखनऊ से द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया है,६०६ चौपेजी पृष्ठ|

               जटमल या जटमल

धर्म सिंह के पुत्र कबीरश्वर उपाधि धारण करते थे,और नजीरूद्दीन’के पुत्र अली खाँ पठान राजा के राजत्व-काल में, सत्रहवीं शताब्दी में मोरछत्तो"(Mortchhatto) में रहते थे| वे ईसवी सन् १६२४ में संबर (Sarmbar):नगर में,सिंहल के राजा की पुत्री और चित्तौड़ के राजा,रत्नसेन की पत्नी,

१. टॉड,‘एशियाटिंक जर्नल,अक्टूबर,१८४० २. भा० ‘संसार के सार का दिया हुआ’ ३. भा० ‛बंधे हुए बालों का जूढ़ा|’ ४. कवि के अनुसार, किन्तु यहा किस सन्नाट का उल्लेख हैं, मैं नहीं कह सकता। ५. 'जुरना एसियाट'(Journal Asiatique, १८५४, जनवरी अंक , में भी पैवी(Th Pavie) का विचार है कि या नगर मालवा में हैमिल्टन द्वारा बताया गया Morkschudra है । ६ या मालवा में,उज्जैन के निकट,सम्वर ( Samwar )