पृष्ठ:हिंदुई साहित्य का इतिहास.pdf/२४१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ जाँच लिया गया है।
८६]
हिंदुई सहित्य का इतिहास

अंत में इसी लेखक की 'परमार्थ जपजी'[१] शीर्षक रचना है,जिसकी एक हस्तलिखित प्रति कलकत्ते की एशियाटिक सोसायटी के पुस्तकालय में है;और'घनावत'[२] (Ghanawat),कविता जिसकी छोटे फोलिओ में, १०६७(१६५६-१६५७) में प्रतिलिपि की गई,एक अत्यन्त सुन्दर हस्तलिखित प्रति डॉ० ए० स्प्रेगर (Sprenger) के पास है।

जायसी शेरशाह के राजत्व-काल में जीवित थे, क्योंकि ६४७ (१५४०-२५४१) में उन्होंने अपने 'पद्मावती'काव्य की रचना की। यह रचना,जो हिन्दी में लिखी गई है,या तो फारसी अक्षरों में,[३] था देवनागरी अक्षरों में, लिखी गई है, और जिसमें ६५०० के लगभग छंद हैं।[४]

ज़ाहर[५] सिंह

'फाग'(श्री कृष्ण)--श्री कृष्ण का फाग-के रचयिता हैं,कविता कृष्ण की क्रीड़ाओं पर है जो होली से संबंधित चरित्र है जब कि हमेशा लाल या पीले रंगे हुए अवरक की बुकनी फेंकी जाती है,और जिसे 'फाग'कहते हैं । यह कविता,जिसके मुख


  1. जिसका 'असीम सत्ता पर वातत्रात का आत्मा' अर्थ प्रतीत होता है।
  2. यह शब्द एक भारतीय व्यक्तिवाचक नाम प्रतीत होता है,क्योंकि यह 'घर(सप्राण 'ग') से लिखा गया है।
  3. रिशल्यू ( Richelieu) की सड़क वाले पुस्तकालय की हस्तलिखित प्रति और हंकन फोर्स ( Duncan Forbes ) के पास सुरक्षित हस्तलिखित ग्रन्थों में से नं० १६८ की प्रति फारसी अक्षरों में हैं। १८५६ के 'जूर्ना एसियातीक' (Journal Asiatique) में पद्मावत पर श्री टी० पैवी (T. Pavie)का कार्य देखिए।
  4. उसी पत्रिका में श्री टी० पैवी ने उसका अनुवाद दिया है। इस काव्य का एक लखनऊ का संस्करण है,१८४४,अठपेजो।
  5. 'जाहर' संभवतः अरबो शब्द 'जौहर'-मोती या हीरा के हिन्दुओं द्वारा किए गए विकृत हिज्जे हैं।