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हिंदुई साहित्य का इतिहास
       'तारिणी चरण मित्रा

हिन्दू विद्वान् जो रचयिता हैं : १.‘पुरुष परिच्छा(कसौटी या पुरुष की पहचान )। वह हिन्दुओं के नैतिक सिद्धान्तों की व्याख्या करने वाली कहानियों का एक संग्रह है,उसका संस्कृत से हिन्दुस्तानी में अनुवाद किया गया है,और वह १८१३ में कलकत्ते से प्रकाशित हुई है। काली कृष्ण ने संस्कृत पाठ का अँगरेजी में अनुवाद किया है।

२.हिन्दुओं के लोकप्रिय त्यौहारों के संक्षिप्त विवरण के, ‘हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स'की जिल्द १ में प्रकाशित१५२७ में कलकत्ते में छपा,संक्षिप्त विवरण जिसका मैंने उस रचना के लिए उपयोग किया है जो मैंने नूवो जुरना एसियातीक'(Nouv- eau Journal Asiatique ),जि०१३,प्र० ६७ और उसके बाद,और पृष्ठ २१६ और उसके बाद, में दी है । उन्होंने निम्नलिखित रचनाओं में सहायता दी : १.‘दि ऑरिएंटल फ़ैब्यूलिस्ट,डॉक्टर गिलक्राइस्ट द्वारा प्रका- शित ईसप की तथा अन्य कहानियों का हिन्दुस्तानी, ब्रज-भाखा आदि में अनुवाद। वे ब्रज-भाखा अनुवाद के रचयिता हैं।

२.हिन्दी ऐंड हिन्दुस्तानी सेलेक्शन्स'। उन्होंने यह रचना श्री ‘डब्ल्यू प्राइस की सहकारिता में प्रकाशित की है । उसकी योजना और कार्य रूप में परिणति उन्हीं के द्वारा प्रस्तुत हुई।

१. तारिखी चरण मित्र अर्थात् दुर्गा के चरणों का मित्र २ ."पुर परोछा (फरसी लिपि से ) ३.प्रथम संस्करण १८२७ में कलकत्ते में छपा;दूसरा संस्करण,जो लीथो में है,१८३० में निकला।उसके साथ 'प्रेम सागर' और उसमें पाए जाने वाले खड़ी बोली शब्दों की डब्ल्यू॰ प्राइस द्वारा प्रस्तुत की गई सूची जोड़ दी गई है।देखिए लेख जो मैंने इस रचना के संबंध में ‘जूरना दे साबाँ’(Journal des Savante),वर्ष १८३२,पृ ४२८ और उसके बाद, और ४७८ और उसके बाद,में लिखा है।