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हिंदुई साहित्य का इतिहास

इसके बाद वे आवेंगे। तुम शीघ्र उन्हें देखोगे।' बादशाह लाज के मारे गड़ गया,और फिर तुलसी ने उससे कहा: 'यह स्थान अब से रघु-नाथ का हो गया; अपना झंडा कहीं और जाकर लगाओ, और यदि तुम अपना भला चाहते है तो, कहीं और अपना निवास-स्थान बनाओ।' यही अवसर था जब कि बादशाह ने पुगनी दिल्ली छोड़ दी, शाहजहांनाबाद बसाया,[१] और जहाँ अपने रहने के लिए उसने महल बनाया। स्वयं तुलसी, दिल्ली से वृन्दावन आए और वहाँ नाभा जू[२] से भेट कीं। वृन्दावन में वे साथ-साथ जहाँ-जहाँ गए उन्होंने राम और सीता का गुणगान किया, और कृष्ण तथा राधा का उल्लेख सुना।

दोहा

सब कहते हैं : कृष्ण और राधा हममें ऐसे मिले हुए हैं जैसे चिता में तीनों प्रकार की लकड़ी।[३] तब तुलसी, राम की ओर से, उनके विरुद्ध घृणा फैलाने ब्रज क्यों आए हैं? तुलसी ने जब सुना कि लोग उनके बारे में ऐसा कहते हैं. तो वे एक कुटी में जाकर रहने लगे, जहाँ से वे बाहर नहीं निकलते थे।

किन्तु एक बैष्णव उन्हें बहका कर कृष्ण-मंदिर में ले गया। उसने उनसे कहा :‘आओ,और तुम्हें राम के दर्शन होंगे।' तुलसी वस्तुतः उसके साथ गए,किन्तु देवता के हाथ में वंशी[४] देख कर उन्होंने यह दो पढ़ा:


  1. आधुनिक दिल्ली की स्थापना के संबंध में हिन्दुओं में प्रचलित कथा इसी प्रकार की है दस का बहुत पहले भी उल्लेख किया जा चुका है।
  2. अथवा सभा जी 'भक्तमाल' के रचयिता। दूसरी जल्द में उन पर लेख देखिए।'जू,'ज',आकद-रसूचक्र उपाधि,के प्राचीन और दक्षिणी हिज्जे है।
  3. पाठ में हैं ‘आाक.'टाक' (?ढाकअनु०} और ‘कैर, अथार्थ‘asclepiasigantea,'butea frondosa’ और ‘Capparis aphyla" वृक्षों की लकड़ी।
  4. कृष्ण की विशेषता