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तुलसी-दास [६६

                दोहा
कहा कहाँ छवि आज की भले बिराजे नाथ।
 तुलसी मस्तक जब नशे धनुष बाण लेेेउ साथ॥'

ये शब्द सुनते हो, देवता ने वंशी छिपाली,और धनुष-बाण सहित दर्शन दिए। तब तुलसी ने यह दोहा बनाया:

  किरीट मुकुट माथे धो धनुष बाण लियो हाथ।
  तुलसी जनके कारणों नाथ भये रघुनाथ।।२

‘रामायण' पूर्वी भाखा या पूर्वी हिन्दुई,अर्थात् हिन्दी की बोलियो में सबसे अधिक परिष्कृत व्रज की बोली में लिखा गया है। वह सात सर्ग या भागों (काण्ड)3 में विभक्त है, जैसे :'बालकाण्ड', अर्थात् बाल्यावस्था का भाग, संपूर्ण रचना की भूमिका:उससे विष्णु के अवतार के कारणों आदि का पता लगता है।’‘अयोध्याकाण्ड':अयोध्या(अवध) का भाग;उसमें इस नगर में राम के कार्यों का उल्लेख है।*‘अरण्यकाण्ड';उससे राम का जंगलों

 १.राम की विशेषता
 २.छप्पय और ये दो दोहे भक्तमाल सटीक' के मुंशी नवल किशोर प्रेस के १८३ के संस्करण(प्रथम)से लिए गए है ।-अनु०
 ३.‘गोल्ड एक्सरसाइज़ ऑॉब दि आम’ ( Field Exercises of the Army) में लाथो रचनाओं से संबंधित सूचना ( नोट ) में उसे केवल छः सौं(फ़स्ल) में निर्मित कहा गया है, किन्तु यह अशुद्ध है। पौलाँ द मैंबार लेमी(Le P.Paulin de Saint-barth6emy) ने अपने ‘MuseiBorgiani codices manuscripti’, पृ० १६३, में मारकुल अ सूबा'(le P. Marcus a Tumba)कृत हिन्दुस्तानी के आधार पर सातवें सर्ग(उत्तर काण्ड)के अनुवाद का उल्लेख किया है।
 ४.यह अलग से आगरे से, १८६५ में प्रकाशित हुआ है, २२४ अठपेजो पृष्ठ।

५.अलग से आगरे से १८६८ में प्रकाशित १४० पृष्ठ।